(ऐतिहासिक दिवस पर श्रद्धांजलि विशेष लेख)
भारत के इतिहास में 31 अक्टूबर का दिन केवल कैलेंडर की एक तारीख नहीं, बल्कि अनेक युगपुरुषों और युगनायिकाओं की विदाई का दिन भी है। इस दिन कई ऐसे महान व्यक्तित्व इस संसार से विदा हुए, जिनकी स्मृतियाँ आज भी भारतीय जनमानस में अमर हैं। आइए जानते हैं, उन दिवंगत विभूतियों के जीवन, योगदान और प्रेरक यात्रा के बारे में —
🎶 1. सचिन देव बर्मन (1906 – 1975)
जन्मस्थान: कोमिल्ला (अब बांग्लादेश में)
प्रदेश: त्रिपुरा राजघराने से संबंध
शिक्षा: कोलकाता विश्वविद्यालय से संगीत और कला की प्रारंभिक शिक्षा
संगीत की आत्मा यदि कभी किसी इंसान में बसती है, तो वह सचिन देव बर्मन थे। वे सिर्फ संगीतकार नहीं, बल्कि भावनाओं के शिल्पकार थे। बंगाली लोकधुनों को हिंदी सिनेमा में इस तरह पिरोया कि उनकी धुनें आज भी श्रोताओं के दिल में गूंजती हैं। “आराधना”, “गाइड”, “प्यासा”, “कागज़ के फूल” जैसी फिल्मों का संगीत उनकी अमर रचनात्मकता का प्रतीक है। उनके गीतों में सादगी, लोक संस्कृति और आत्मीयता का अनूठा संगम था। उन्होंने अपने बेटे राहुल देव बर्मन (आर. डी. बर्मन) को भी संगीत की विरासत सौंपी, जिसने भारतीय सिनेमा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
निधन: 31 अक्टूबर 1975
उनका संगीत आज भी भारतीय आत्मा की धड़कन बनकर जीवित है।
🇮🇳 2. इंदिरा गांधी (1917 – 1984)
जन्मस्थान: प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा: विश्व-प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों — शांति निकेतन, ऑक्सफोर्ड और सोमरविल कॉलेज से शिक्षित
प्रदेश: उत्तर प्रदेश
भारत की “लौह महिला” इंदिरा गांधी देश की पहली और अब तक की सबसे प्रभावशाली महिला प्रधानमंत्री थीं। उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प, निर्णायक नीतियों और साहस से भारत को एक मजबूत राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में विजय, बांग्लादेश का निर्माण, हरित क्रांति, और बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे ऐतिहासिक कदम उनके दूरदर्शी नेतृत्व के उदाहरण हैं।
31 अक्टूबर 1984 को उनके बलिदान ने देश को झकझोर दिया, परंतु उनकी विचारधारा और कार्यनीति आज भी भारत की राजनीतिक चेतना में जीवंत है।
उद्धरण: “मुझे गर्व है कि मेरा जन्म भारत में हुआ है, और मैं भारत के लिए जीवन अर्पित करने को तैयार हूँ।”
✍️ 3. अमृता प्रीतम (1919 – 2005)
जन्मस्थान: गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में)
प्रदेश: पंजाब
शिक्षा: लाहौर में शिक्षा प्राप्त की
अमृता प्रीतम भारतीय साहित्य की वह आवाज़ थीं, जिसने स्त्री के दर्द और प्रेम को शब्दों की शक्ति से मुक्त किया। उनका लेखन केवल साहित्य नहीं, बल्कि संवेदना की क्रांति था। “पिंजर”, “अग्नि–रेखा”, और “रसीदी टिकट” जैसी रचनाएँ स्त्री स्वाभिमान और समाज के द्वंद्व का सशक्त चित्रण करती हैं।
विभाजन की पीड़ा पर लिखी उनकी प्रसिद्ध कविता “अज अाखां वारिस शाह नूं” आज भी पंजाब की आत्मा की पुकार है।
निधन: 31 अक्टूबर 2005
उनकी लेखनी स्त्री स्वतंत्रता की अमर प्रतीक बन चुकी है।
🎤 4. पी. लीला (1934 – 2005)
जन्मस्थान: त्रावणकोर (केरल)
प्रदेश: केरल
शिक्षा: पारंपरिक कर्नाटक संगीत की शिक्षा गुरुओं से प्राप्त
पी. लीला दक्षिण भारतीय सिनेमा की सबसे मधुर पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। उन्होंने तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ फिल्मों में सैकड़ों गीत गाए। उनकी आवाज़ में भक्ति, प्रेम और करुणा का अद्भुत संगम था। उन्होंने महान संगीतकारों के साथ काम करते हुए भारतीय संगीत को एक नई ऊँचाई दी।
निधन: 31 अक्टूबर 2005
उनका योगदान भारतीय फिल्म संगीत के स्वर्ण युग का अविभाज्य हिस्सा है।
🏛️ 5. ब्रज कुमार नेहरू (1909 – 2001)
जन्मस्थान: इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा: ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा
प्रदेश: उत्तर प्रदेश
ब्रज कुमार नेहरू भारतीय प्रशासनिक सेवा के उन प्रखर अधिकारियों में से थे जिन्होंने स्वतंत्र भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे पंडित जवाहरलाल नेहरू के चचेरे भाई थे और भारत के राजनयिक व राज्यपाल के रूप में अपनी कार्यकुशलता के लिए प्रसिद्ध थे।
उन्होंने अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में भारत के राजदूत के रूप में कार्य किया तथा बाद में जम्मू-कश्मीर और गुजरात के राज्यपाल भी बने।
निधन: 31 अक्टूबर 2001
वे अपने सौम्य व्यवहार और समर्पण के लिए याद किए जाते हैं।
📚 6. के. पी. सक्सेना (1932 – 2013)
जन्मस्थान: लखनऊ, उत्तर प्रदेश
शिक्षा: लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक
प्रदेश: उत्तर प्रदेश
हास्य और व्यंग्य के महारथी के. पी. सक्सेना ने हिंदी साहित्य को नई पहचान दी। उनका लेखन न केवल हँसी उत्पन्न करता था बल्कि समाज की विसंगतियों पर गहरा प्रहार भी करता था। “कभी-कभी”, “तनख्वाह”, “इंस्पेक्टर मातादीन” जैसे उनके व्यंग्य आज भी प्रासंगिक हैं।
उन्होंने टीवी धारावाहिकों और फिल्मों में भी लेखन किया, जिनमें लगान जैसी फिल्म में संवाद लेखन के लिए उन्हें राष्ट्रीय पहचान मिली।
निधन: 31 अक्टूबर 2013
वे अपनी व्यंग्यात्मक शैली और सरल भाषा के कारण जनमानस के प्रिय लेखक रहे।
🌺31 अक्टूबर इतिहास की वह तिथि है जब भारत ने अनेक युगपुरुषों और युगनायिकाओं को खोया, पर उनकी स्मृतियाँ आज भी भारतीय संस्कृति, राजनीति, साहित्य और संगीत के हर कोने में गूँजती हैं। उनके कार्य और योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देते रहेंगे।
