Tuesday, October 28, 2025
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“नामांकन के बाद महागठबंधन में फूट गहराई, कई सीटों पर साथी दल आमने-सामने”

“बिहार चुनाव 2025: सीटों की जंग में महागठबंधन की दरारें गहरी, राजद-कांग्रेस में अंदरूनी खींचतान तेज़”

पटना (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण के नामांकन की प्रक्रिया पूरी होते ही महागठबंधन की आंतरिक स्थिति एक बार फिर चर्चा में आ गई है। सीटों के बंटवारे को लेकर लंबे समय से चल रही खींचतान और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के गठबंधन से बाहर होने के बाद अब राजद और कांग्रेस के बीच मतभेद खुलकर सामने आने लगे हैं। कई सीटों पर दोनों दलों के उम्मीदवार एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं, जिससे महागठबंधन की एकता पर सवाल उठने लगे हैं।

243 सदस्यीय बिहार विधानसभा की 121 सीटों पर अब कुल 1,314 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिन पर 6 नवंबर को मतदान होगा। चुनाव आयोग ने अब तक 61 नामांकन वापस लिए हैं और 300 से अधिक नामांकन खारिज कर दिए गए हैं।

राजद, जो महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है, ने इस बार 143 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। हालांकि, पार्टी ने बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार राम के खिलाफ कुटुम्बा विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवार न उतारकर सीधा टकराव टाल दिया है। फिर भी, लालगंज, वैशाली और कहलगांव जैसे इलाकों में राजद और कांग्रेस के बीच मुकाबला तय माना जा रहा है।

विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को लेकर भी हालात असमंजस भरे रहे। तारापुर में जहां भाजपा ने उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को मैदान में उतारा है, वहीं राजद का सामना वीआईपी से होना था। लेकिन वीआईपी उम्मीदवार सकलदेव बिंद ने नामांकन वापस लेकर भाजपा में शामिल होकर समीकरण बदल दिए। वहीं, गौरा बोराम सीट पर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने अपने उम्मीदवार का समर्थन वापस लेकर वीआईपी नेता संतोष सहनी के समर्थन की घोषणा की, लेकिन इसका असर सीमित ही रहा।

दरभंगा की गौरा बोराम सीट पर राजद के चुनाव चिह्न पर नामांकन करने वाले अफ़ज़ल अली ने पद न छोड़ने का फैसला लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में असमंजस पैदा कर दिया।

परिहार सीट पर राजद को सबसे बड़ी बगावत का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ पार्टी की महिला शाखा प्रमुख रितु जायसवाल ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी ताल ठोक दी है। वे पार्टी टिकट से वंचित होने और पारिवारिक राजनीति को बढ़ावा देने पर नाराज़ बताई जा रही हैं।

दूसरी ओर, कांग्रेस भी अपनी साख बचाने की जद्दोजहद में है। वह इस बार 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जो 2020 की तुलना में पाँच कम हैं। पिछले चुनाव में पार्टी सिर्फ 19 सीटें जीत सकी थी, जिसे महागठबंधन की हार का एक बड़ा कारण माना गया था।

महागठबंधन के भीतर “पप्पू यादव फैक्टर” भी उभरकर सामने आया है। पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव के समर्थकों को टिकट दिए जाने या बेहतर सीटों से वंचित किए जाने को लेकर कांग्रेस के भीतर असंतोष की लहर है।
इस बीच, छोटे सहयोगी दलों ने अपनी हिस्सेदारी तय कर ली है।
विकासशील इंसान पार्टी (VIP) ने 16 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
भाकपा (माले) इस बार 20 सीटों पर मैदान में है।
भाकपा ने 9 और माकपा ने 4 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।
महागठबंधन की यह आंतरिक खींचतान और टिकट वितरण को लेकर असंतोष चुनावी समीकरणों को नया मोड़ दे सकता है। जहां राजद और कांग्रेस एकजुटता का दावा कर रहे हैं, वहीं ज़मीनी स्तर पर उम्मीदवारों के बीच संघर्ष गठबंधन की एकता को कमजोर करता दिख रहा है।

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