देवरिया, (राष्ट्र की परम्परा)। नागरी प्रचारिणी सभा के तत्वावधान में रविवार को हिन्दी दिवस समारोह पूर्वक मनाया गया। इस दौरान शिक्षा व अन्य क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले विद्वानों को प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह, अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया।
इस दौरान अध्यक्ष डॉ. जयनाथ मणि त्रिपाठी, मंत्री डॉ. अनिल कुमार त्रिपाठी, उपाध्यक्ष इन्द्र कुमार दीक्षित व डॉ. दिवाकर प्रसाद तिवारी, संयुक्त मंत्री डॉ. सौरभ श्रीवास्तव, बृजेश पांडेय, कोषाध्यक्ष सरोज कुमार पाण्डेय, आय व्यय निरीक्षक वृद्धि चन्द्र विश्वकर्मा ने प्रो. आरएस सर्राजू पूर्व सम कुलपति हिन्दी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय हैदराबाद को नागरी रत्न, प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी पूर्व कुलपति इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक, मध्यप्रदेश को नागरी भूषण एवं गीतकार भूषण त्यागी को नागरी श्री सम्मान से प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह, अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर प्रो. आरएस सर्राजू ने कहा कि आज भूमण्डलीकरण के दौर में प्रायः प्रतिष्ठान, दुकान पर नाम अंग्रेजी में लिखे मिलते हैं। ऐसा होने से हम अपनी संस्कृति और भाषा से दूर होते जा रहे हैं। कम से कम इतना तो होना ही चाहिए कि प्रतिष्ठानों के नाम हिन्दी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में लिखे जायें। अपनी बात कहूं तो हिन्दी सीखने के लिए मैंने बनारस, इलाहाबाद, पटना आदि की यात्रा की। मैं हिन्दी और भारतीय भाषाओं को नमन करता हूं। आप लोगों ने मुझे सम्मानित किया इसके लिए बधाई। नागरी भूषण सम्मान से सम्मानित प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने सभा और सभा परिवार को धन्यवाद देते हुए कहा जिस भाषा को राष्ट्र और राष्ट्र नायकों का साथ मिल जाता है वह बहुत उन्नत हो जाती है। हिन्दी हमारे आचार विचार के साथ सत्व और निजत्व की भाषा है। यह हमारी सांस्कृतिक पहचान है। हिन्दी आस, विश्वास और स्वास की भाषा है। यह प्रीति और प्यार की भाषा है। हिन्दी हमारे स्पंदन के अभिव्यक्ति की भाषा है। इसके विकास यात्रा में भारतीय कामगारों की विशेष भूमिका है, जब तक यह जन के साथ रहेगी आगे बढती रहेगी। नागरी श्री सम्मान से सम्मानित कवि भूषण त्यागी ने कहा अपने घर में सम्मानित होना बहुत ही सुखद और आह्लादकारी होता है। अपने घर में यह मेरा दूसरा सम्मान है मैं इस पूरी सभा का बहुत बहुत आभारी हूं। उन्होंने स्वयं से शिकायत यही रात दिन, कुछ लिखा क्यों नहीं आदमी के लिए एवं आलोक नहीं मरने वाला सुनाया। इसके पश्चात 12 सितम्बर को हुए वाद-विवाद प्रतियोगिता में सफल हुए बच्चों को अतिथि गण ने पुस्तक और प्रमाण-पत्र देकर पुरस्कृत किया। इससे पूर्व अतिथियों ने सभा के अध्यक्ष, मंत्री पदाधिकारियों के साथ दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभरम्भ किया। वाणी वन्दना दयाशंकर कुशवाहा एवं स्वागत गीत छेदी प्रसाद गुप्त विवश ने प्रस्तुत किया। इस दौरान आजीवन सदस्यता ग्रहण करने वाले सदस्यों ई. रमेश तिवारी, डॉ. मधुसूदन मिश्र एवं शरदेन्दु मिश्र को शपथ दिलायी गई एवं प्रमाण पत्र दिया गया। इसके पूर्व आयोजित द्वितीय रविवारीय कवि गोष्ठी में पवन प्रज्ञान, उमेश चन्द्र तिवारी, लालता प्रसाद चौधरी, विकास तिवारी विक्की, बृजेन्द्र नाथ त्रिपाठी, नन्दलाल मणि, योगेन्द्र पाण्डेय, नित्यानंद पाण्डेय, रविनंदन सैनी, गोपाल जी त्रिपाठी, सौदागर सिंह, रमेश सिंह दीपक, अवधेश निगम राजू, प्रीति पाण्डेय, संजय कुमार राव, राम मनोहर मिश्र, रत्नेश सिंह रतन आदि कवियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। इस अवसर पर डॉ. जयनाथ मणि त्रिपाठी की पुस्तक सृजन, समीक्षा और संवाद के बेल पत्र एवं गिरिधर करुण की काव्य पुस्तक कोरे कागज के आखर का लोकार्पण हुआ। कवि गोष्ठी का संचालन प्रार्थना राय एवं सम्मान समारोह का संचालन रविप्रकाश मिश्र ने किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. सौरभ श्रीवास्तव ने आभार प्रकट किया। सभा के मंत्री डॉ. अनिल कुमार त्रिपाठी ने अतिथियों का परिचय देते हुए शाब्दिक स्वागत किया। इस दौरान जगदीश उपाध्याय, रवीन्द्र नाथ तिवारी, अरुण कुमार राव, कौशल कुमार मिश्र, डॉ अभय कुमार द्विवेदी, शिव प्रकाश मिश्र, डॉ मधुसूदन मणि त्रिपाठी, ऋषिकेश मिश्र, हिमांशु कुमार सिंह, श्वेतांक मणि त्रिपाठी, रमेश चन्द्र त्रिपाठी, दुर्गा पाण्डेय, डॉ शकुन्तला दीक्षित, वीरेंद्र कुमार शुक्ल, बृजेश पाण्डेय प्रबन्धक, आशुतोष त्रिपाठी, वरुण पाण्डेय, गोपाल कृष्ण सिंह रामू, सोमनाथ मिश्र, रजनीश मोहन गोरे, परमेश्वर जोशी आदि गणमान्य उपस्थित रहे।