बिहार चुनाव 2025 से पहले पवन सिंह की आरके सिंह से मुलाकात ने बढ़ाई सियासी हलचल - राष्ट्र की परम्परा
August 19, 2025

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बिहार चुनाव 2025 से पहले पवन सिंह की आरके सिंह से मुलाकात ने बढ़ाई सियासी हलचल

दिल्ली/पटना (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले भोजपुरी स्टार और आरा से निर्दलीय सांसद पवन सिंह एक बार फिर राजनीतिक सुर्खियों में आ गए हैं। सोमवार को दिल्ली में उनकी भाजपा नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह से मुलाकात ने राजनीतिक हलकों में नई चर्चा छेड़ दी है। सवाल उठ रहा है कि यह सिर्फ शिष्टाचार भेंट थी या फिर इसके पीछे कोई गहरी रणनीति छिपी है।

भोजपुरी स्टार से सांसद तक का सफर पवन सिंह को लोग उनके लोकप्रिय भोजपुरी गानों और एक्शन फिल्मों के कारण लंबे समय से जानते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने राजनीति में भी अपनी मजबूत पहचान बनाई है। 2024 लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया, तब उन्होंने आरा से निर्दलीय चुनाव लड़ने का साहसिक फैसला लिया। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने भारी मतों से जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया।
विशेषज्ञ मानते हैं कि उनकी जीत सिर्फ व्यक्तिगत करिश्मे से नहीं, बल्कि युवाओं में उनकी लोकप्रियता और आरा क्षेत्र में मौजूद उनके मजबूत जनाधार की वजह से संभव हुई। यही कारण है कि अब उन्हें नज़रअंदाज करना किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं रह गया है।

भाजपा के लिए क्या संकेत?

आरके सिंह, जो आरा से भाजपा सांसद रह चुके हैं और केंद्र में मंत्री पद भी संभाल चुके हैं, अब पवन सिंह के साथ एक मंच पर दिखाई दिए। आरा सीट भाजपा का पारंपरिक गढ़ मानी जाती रही है। लेकिन 2024 में जब भाजपा ने पवन सिंह को टिकट नहीं दिया, तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव जीतकर भाजपा की पकड़ कमजोर कर दी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली में हुई यह मुलाकात संकेत देती है कि भाजपा भविष्य की रणनीति में पवन सिंह को अपने साथ लाने की कोशिश कर सकती है। भाजपा के लिए आरा सीट पर फिर से पकड़ मजबूत करना अहम है और पवन सिंह जैसे लोकप्रिय चेहरे को नज़रअंदाज करना जोखिम भरा भी हो सकता है।

चुनावी समीकरणों में नई हलचल

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही खेमों में सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर मंथन चल रहा है। ऐसे में पवन सिंह और आरके सिंह की मुलाकात ने समीकरणों में नई हलचल मचा दी है।
भले ही इस मुलाकात को औपचारिक बताया जा रहा हो, लेकिन इसके राजनीतिक मायनों को नकारा नहीं जा सकता। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या आने वाले दिनों में पवन सिंह भाजपा खेमे में वापसी करेंगे या फिर निर्दलीय रहते हुए किसी अन्य गठबंधन को चौंकाने वाली रणनीति बनाएंगे।