शिव ही आदि, शिव ही अंत - राष्ट्र की परम्परा
August 18, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

शिव ही आदि, शिव ही अंत

शिव ही आदि, शिव ही अंत हैं,
शिव ही ब्रह्म, शिव ही ब्रह्मतंत्र हैं।
शिव ही बीज, शिव ही वृक्ष विशाल,
शिव में छिपा संपूर्ण काल।

शिव ही सृष्टि के मूल स्रोत हैं,
शिव ही संहारक, शिव ही पोषक ज्योति हैं।
शिव चेतन हैं, शिव अवचेतन,
शिव से ही जागृति, शिव में ही मौन मन।

शिव ध्वनि हैं, जो नाद से फूटे,
शिव मौन हैं, जो ध्यान में छूटे।
शिव अग्नि हैं, जो सब कुछ जला दे,
शिव शीतल जल हैं, जो सबको पला दे।

शिव तांडव हैं, प्रलय की चाल,
शिव लय हैं, ब्रह्मा की कमल-माल।
शिव ही योग के प्रथम अधिष्ठाता,
शिव ही भस्म में लिपटा सन्यासी ज्ञाता।

शिव अरण्य हैं, शिव नगर के वासी,
शिव डमरू की धुन, शिव त्रिशूलधारी अविनाशी।
शिव जटाओं से गंगा बहती,
शिव की दृष्टि से कृपा झरती।

शिव ही राग, शिव ही विराग,
शिव ही भोग, शिव ही त्याग।
शिव ही काल, शिव ही महाकाल,
शिव ही सरल, शिव ही विशाल।

शिव शून्य हैं, जहाँ सब लीन,
शिव पूर्ण हैं, जो सबमें प्रवीन।
शिव ही नियम, शिव ही अपार,
शिव ही सागर, शिव ही किनार।

शिव नश्वरता के पार के ज्ञानी,
शिव हैं साक्षात स्वयं भवानी।
शिव ही नटराज, शिव ही संत,
शिव ही आदि, शिव ही अंत।

प्रस्तुति ● नवनीत मिश्र