Saturday, October 18, 2025
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लोक साहित्य और कला जातीय वैमनस्यता को कमजोर करने की प्रभावशाली कड़ी: डॉ. आमोद कुमार राय

पूर्वांचल की सामाजिक एकता पर केंद्रित शोध परियोजना के निष्कर्ष प्रकाशित, पुस्तक रूप में आया अध्ययन

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। पूर्वांचल की लोक संस्कृति, लोक साहित्य और कलाएं इस क्षेत्र की सामाजिक एकता को मज़बूत करती हैं और जातीय वैमनस्यता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह निष्कर्ष दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. आमोद कुमार राय द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार के अनुदान से पूर्ण की गई शोध परियोजना में सामने आया है।
यह परियोजना वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश सरकार के नियोजन विभाग तथा विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय संगोष्ठी “पूर्वांचल का सतत विकास: मुद्दे, रणनीति और भावी दिशा” से प्रेरित होकर प्रारंभ की गई थी। उस संगोष्ठी में पूर्वांचल की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दशा-दिशा पर गहन विमर्श किया गया था, जिसमें सामाजिक एकता को लेकर भी ठोस सुझाव सामने आए थे।
इन्हीं बिंदुओं को शोध के केंद्र में रखते हुए डॉ. राय ने ढाई वर्षों में यह शोध कार्य पूर्ण किया, जिसका निष्कर्ष है कि लोक साहित्य, गीत, गायन शैलियाँ एवं परंपरागत कला रूपों ने लोगों को एकजुट रखने और जातिगत भेदभाव को कम करने में निर्णायक भूमिका निभाई है।
“फोक लिटरेचर एंड आर्ट इन ईस्टर्न यू.पी. एंड इट्स रोल इन सोशल इंटीग्रेशन” शीर्षक से प्रकाशित इस पुस्तक में कुल पाँच अध्याय हैं, जो पूर्वांचल की सांस्कृतिक अवधारणा, लोक साहित्य एवं कला की परिभाषा, विविध प्रकार और उनके सामाजिक प्रभावों को विस्तार से प्रस्तुत करते हैं। यह पुस्तक विशेष रूप से अंग्रेज़ी भाषा में इस विषय पर किया गया पहला गंभीर शोध कार्य है, जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोध जगत में पूर्वांचल की संस्कृति को एक नई दृष्टि से प्रस्तुत करता है।
कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने इस अवसर पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि, “इस प्रकार के शोध कार्यों से न केवल लोक संस्कृति को वैश्विक पटल पर पहचान मिलेगी, बल्कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति के समाजोपयोगी शोध को बढ़ावा देने की भावना को भी मूर्त रूप देगा। डॉ. राय का कार्य अत्यंत सराहनीय है।”
डॉ. राय ने कहा, “लोक साहित्य एवं कलाएं समाज को अदृश्य रूप से जोड़ने वाली वह चुंबकीय शक्ति हैं, जो बिना किसी जाति, वर्ग या भेदभाव के जन को एक सूत्र में पिरोती हैं। यह आस्थाओं, विश्वासों और परंपराओं के इर्द-गिर्द अपने स्वरूप को गढ़ती है और लोक कल्याण ही इसका अंतिम लक्ष्य है।”
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों से जुड़े प्राध्यापक एवं शोधार्थी उपस्थित रहे। प्रमुख रूप से प्रो. अनुभूति दुबे, डॉ. सत्यपाल सिंह सहित कई गणमान्य विद्वानों ने डॉ. राय को बधाई एवं शुभकामनाएं दीं।

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