
—सलेमपुर/देवरिया (राष्ट्र की परंपरा)
“मैं जिंदा हूं, साहब!” — तहसील प्रांगण में यह गुहार लगाते हुए वर्षों से न्याय की भीख मांग रहे हैं खड़क सिंह, जिनकी पहचान सरकारी कागज़ों में ‘मृतक’ के रूप में दर्ज कर दी गई है।
सलेमपुर थाना क्षेत्र के शंकरपुर मझौली राज निवासी खड़क सिंह पुत्र दशरथ, वर्षों पहले रोजगार के सिलसिले में असम चले गए थे। वहीं अपने परिवार के साथ रहते हुए जीवन यापन करते रहे। बीच-बीच में वे गांव भी आते रहे, लेकिन एक दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के बाद इलाज के कारण वे लंबे समय तक गांव नहीं लौट सके।
इसी दौरान उनके सगे भाइयों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया और चालाकी से उनकी पैतृक संपत्ति अपने नाम करवा ली। अब हालत यह है कि जब खड़क सिंह वापस गांव आए तो उन्हें अपने ही घर में घुसने से रोका गया। विरोधियों ने धमकी तक दे डाली—”तू तो मर चुका है, अब अगर दोबारा ज़मीन पर कदम रखा तो मार दिए जाओगे और कोई कुछ नहीं कर पाएगा।”
खड़क सिंह, अब फटे पुराने झोले में दस्तावेजों का बंडल लेकर तहसील में भटक रहे हैं। वे बुधवार को सलेमपुर उपजिलाधिकारी दिशा श्रीवास्तव के समक्ष पहुंचे और अपना दर्द बयां करते हुए कहा, “मैं जिंदा हूं, मेरे पास आधार कार्ड है, परिवार रजिस्टर की प्रति है, फिर भी राजस्व विभाग के फाइलों में मुझे मृत घोषित किया गया है। कृपया मुझे जिंदा मानते हुए मेरी जमीन मुझे वापस दिलवाई जाए।”
उपजिलाधिकारी ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दे दिए हैं। खड़क सिंह को उम्मीद है कि शायद अब उनकी फरियाद सुनी जाएगी और उन्हें उनका हक और पहचान लौटाई जाएगी।
यह घटना न सिर्फ एक व्यक्ति की पीड़ा की कहानी है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे राजस्व विभाग की लापरवाही और पारिवारिक लालच मिलकर एक जीवित व्यक्ति को “कागज़ों में मरा” बना देते हैं।
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