रायबरेली (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। हिंदी के युग प्रवर्तक और राष्ट्रभाषा हिंदी को नई दिशा देने वाले महान साहित्यकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की 87वीं पुण्यतिथि पर उनके जन्मस्थान दौलतपुर और मोक्षस्थली रायबरेली में विविध कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण किया गया। राही ब्लॉक परिसर और दौलतपुर स्थित प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से चर्चा की गई।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति न्यास के तत्वावधान में राही ब्लॉक सभागार में आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि आचार्य द्विवेदी भारतीय पुनर्जागरण के चतुर्थ चरण के सबसे बड़े प्रवक्ता थे। उनके द्वारा विकसित खड़ी बोली हिंदी स्वतंत्रता आंदोलन की प्रभावी भाषा बनी, जिसे 1919 में महात्मा गांधी ने जनआंदोलन की संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार किया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ नागरिक युगुल किशोर तिवारी ने की। पूर्व प्राचार्य आदर्श कुमार ने कहा कि आचार्य द्विवेदी ने हिंदी को केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय जागरण का सशक्त औजार बनाया। उन्होंने भाषा की शुद्धता, विचारों की स्पष्टता और नैतिक मूल्यों को साहित्य की बुनियाद बनाया। प्रोफेसर उदयभान सिंह ने उनके जीवन को साधना, अनुशासन और राष्ट्रसेवा का उदाहरण बताया।
हिंदी विभागाध्यक्ष बद्री दत्त मिश्रा ने कहा कि ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन के माध्यम से आचार्य द्विवेदी ने हिंदी नवजागरण की मजबूत नींव रखी और साहित्य को संगठित स्वरूप देते हुए लेखकों को सामाजिक उत्तरदायित्व से जोड़ा। सेंट्रल बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश तिवारी ने उनके चिंतन को आज के सामाजिक संदर्भ में भी अत्यंत प्रासंगिक बताया। डॉ. संतोष पांडेय ने कहा कि आचार्य द्विवेदी ने साहित्यिक अनुशासन स्थापित कर बोलियों में बंटी हिंदी को खड़ी बोली का सुदृढ़ रूप दिया।
कार्यक्रम में कवियों ने कविता-पाठ के माध्यम से श्रद्धांजलि दी। संचालन शंकर प्रसाद मिश्र ने किया और आभार समिति अध्यक्ष विनोद शुक्ला ने व्यक्त किया। बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी, अधिवक्ता, शिक्षाविद और गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
87वीं पुण्यतिथि पर जन्मस्थली पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि
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