प्रधानमंत्री ने जारी किया डाक टिकट व स्मारक सिक्का
संघ की राष्ट्र साधना पर नवनीत मिश्र का आलेख
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा नागपुर में की गई थी। 2025 में यह संगठन अपनी शताब्दी यात्रा पूरी कर रहा है। सौ वर्षों का यह पड़ाव केवल एक संस्था का इतिहास नहीं, बल्कि भारतीय समाज और राष्ट्र जीवन के अनेक पहलुओं से गहराई से जुड़ा हुआ अध्याय है।
डॉ. हेडगेवार का मानना था कि भारत की गुलामी का मूल कारण समाज का विखंडन और आत्महीनता है। उन्होंने एक ऐसे संगठन का विचार प्रस्तुत किया, जो जाति, भाषा और क्षेत्रीय सीमाओं से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखे। इस विचार का आधार बना – अनुशासन, सेवा और संगठन। शाखा प्रणाली इसी सोच का परिणाम थी, जिसके माध्यम से व्यक्तित्व निर्माण और सामूहिकता की भावना विकसित की गई।

संघ ने छोटे स्तर से शुरुआत की, किंतु धीरे-धीरे इसकी शाखाएँ देशभर में फैलती गईं। स्वतंत्रता संग्राम में अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाने से लेकर आपातकाल जैसी परिस्थितियों तक, संघ ने समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
आज संघ विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठनों में से एक माना जाता है। देशभर में लाखों शाखाएँ नियमित रूप से संचालित होती हैं और करोड़ों स्वयंसेवक सेवा एवं सामाजिक कार्यों से जुड़े हैं। संघ की प्रेरणा से शिक्षा, सेवा, ग्राम विकास, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण जैसे विविध क्षेत्रों में अनेक संगठन कार्यरत हैं। आपदा प्रबंधन और सामाजिक सेवा के अवसरों पर संघ के कार्यकर्ताओं ने सदैव सक्रिय भागीदारी निभाई है। राजनीति के क्षेत्र में भी संघ का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। भारतीय जनता पार्टी के उदय और उसके संगठनात्मक स्वरूप में संघ की भूमिका को विशिष्ट माना जाता है।
संघ को समय-समय पर आलोचना और आरोपों का सामना भी करना पड़ा है। सांप्रदायिकता, असहिष्णुता और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसे प्रश्न उठाए गए हैं। इसके बावजूद संगठन ने अपने ध्येय वाक्य “विश्व को भारत का संदेश देना” के अनुरूप समाज को संगठित करने और राष्ट्रहित को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की दिशा में कार्य जारी रखा है।
शताब्दी वर्ष संघ के लिए आत्ममंथन और भविष्य की दिशा तय करने का अवसर है। नई चुनौतियाँ, जैसे तकनीकी परिवर्तन, वैश्वीकरण, सामाजिक असमानताएँ और पर्यावरण संकट – संगठन से नई कार्ययोजना की अपेक्षा करती हैं। संघ अब समरस समाज, स्वावलंबन और युवा नेतृत्व को प्राथमिकता देकर भविष्य की ओर अग्रसर है। सौ वर्षों की यात्रा यह प्रमाणित करती है कि अनुशासन, सेवा और विचारधारा पर आधारित संस्था समाज को दीर्घकाल तक प्रभावित कर सकती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष केवल एक संगठन का उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय समाज के लिए एक अवसर है कि वह अपनी जड़ों को पहचानते हुए नए युग की चुनौतियों का सामना संगठित रूप से कर सके।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संघ शताब्दी पर डाक टिकट और ₹100 का स्मृति सिक्का जारी किया।