10 दिसंबर का दिन भारत और विश्व इतिहास में ऐसे असाधारण प्रतिभाओं की याद दिलाता है, जिनकी विदाई ने कला, राजनीति, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा के क्षेत्रों में गहरा खालीपन छोड़ा। अलग-अलग कालखंडों में जन्मे ये महान व्यक्ति अपने ज्ञान, संघर्ष और समर्पण से न केवल अपने प्रदेश, बल्कि देश और विश्व के लिए प्रेरणा बने। आइए इन्हें विस्तार से याद करते हैं—
✦ अस्ताद देबू (2020) — भारतीय समकालीन नृत्य का विश्व मंच पर चमकता सितारा
अस्ताद देबू का जन्म 1947 में महाराष्ट्र के नवसारी ज़िले में पारसी परिवार में हुआ था। भारतीय आधुनिक नृत्य शैली को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में उनका योगदान असाधारण रहा। उन्होंने कथक और कतरकली जैसी शास्त्रीय विधाओं को समकालीन नृत्य के साथ जोड़कर अनूठी शैली की रचना की। दुनिया भर के प्रतिष्ठित मंचों पर भारत का परचम लहराने वाले देबू ने अपने काम से आधुनिक भारतीय नृत्य को नई दिशा दी। देश-विदेश में युवा कलाकारों के लिए वह प्रेरणा के स्रोत बने।
✦ सी. एन. बालकृष्णन (2018) — केरल की राजनीति का सादा लेकिन दृढ़ चेहरा
सी. एन. बालकृष्णन का जन्म केरल के त्रिशूर ज़िले में हुआ। वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, विधायक और केरल सरकार में मंत्री के रूप में लंबे समय तक जनता की सेवा करते रहे। समाज कल्याण और आर्थिक सुधारों के मुद्दों पर कायम उनकी सरल लेकिन दृढ़ नीतियों ने उन्हें आम लोगों के बीच प्रिय बनाया। केरल के ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों को गति देने में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा।
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✦ मुशीरुल हसन (2018) — इतिहास और शिक्षा जगत का प्रखर नाम
प्रसिद्ध इतिहासकार मुशीरुल हसन का जन्म 1949 में बिहार के मंगरौल गाँव में हुआ था। उन्होंने भारतीय इतिहास, खासकर स्वतंत्रता आंदोलन, मुस्लिम समाज और विभाजन पर व्यापक शोध किया। जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में उन्होंने शिक्षा सुविधाओं और शोध संस्कृति को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उनके लेखन ने भारतीय इतिहास अध्ययन को नई दृष्टि दी।
✦ प्रो. लालजी सिंह (2017) — भारत के DNA विज्ञान के जनक
उत्तर प्रदेश के जैसलमेर गाँव से निकलकर लालजी सिंह देश के अग्रणी जीव-विज्ञानी बने। उन्हें भारत में DNA फिंगरप्रिंटिंग तकनीक को स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। बीएचयू के कुलपति रहे सिंह ने अपराध अन्वेषण, पितृत्व परीक्षण और प्रजाति संरक्षण में वैज्ञानिक क्रांति ला दी। देश के विज्ञान क्षेत्र में उनके योगदान को सदैव याद किया जाएगा।
✦ दिलीप चित्रे (2009) — मराठी साहित्य का आधुनिक स्वर
दिलीप चित्रे का जन्म 1938 में गुजरात के बड़ौदा में हुआ था, लेकिन वे मराठी साहित्य और आधुनिक कविता की धारा के प्रमुख हस्ताक्षर बने। वे प्रतिष्ठित लेखक, अनुवादक, फिल्मकार और आलोचक थे। उनकी रचनाओं में मानवीय पीड़ा, सामाजिक परिवर्तन और जीवन की गहराइयों का सशक्त चित्रण मिलता है। मराठी साहित्य को अंतरराष्ट्रीय परिचय दिलाने में उनकी बड़ी भूमिका रही।
✦ अशोक कुमार (2001) — भारतीय सिनेमा के दादामोनी
भुवनेश्वर, उड़ीसा के मूल निवासी अशोक कुमार का जन्म 1911 में हुआ। भारतीय फिल्म जगत में उन्हें ‘दादामोनी’ कहा जाता था। 1930–80 के दशक तक उनका अभिनय भारतीय सिनेमा का स्तंभ रहा। ‘किस्मत’, ‘जागृति’, ‘अचल’, ‘भूमिका’ जैसी फिल्मों में उन्होंने गहरी छाप छोड़ते हुए अभिनय के मानक गढ़े। भारतीय सिनेमा को आधुनिक अभिनय शैली देने में उनका बड़ा योगदान है।
✦ चौधरी दिगम्बर सिंह (1995) — स्वतंत्रता सेनानी व जननेता
उत्तर प्रदेश के हापुड़ ज़िले में जन्मे दिगम्बर सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई। आज़ादी के बाद वे सामाजिक न्याय, किसान अधिकार और ग्रामीण विकास के मुद्दों पर मुखर नेता बने। संघर्षों से भरे उनके राजनैतिक जीवन ने अनेक युवा नेताओं को प्रेरित किया।
✦ के. एम. पणीक्कर (1963) — राजनय, राजनीति और इतिहास के अद्वितीय विद्वान
केरल के कोट्टायम में जन्मे पणीक्कर मैसूर राज्य के प्रमुख राजनेता, इतिहासकार और राजनयिक थे। समुद्री इतिहास और भारतीय विदेश नीति पर उनकी पुस्तकें आज भी संदर्भ ग्रंथ मानी जाती हैं। वे भारत की कूटनीति को मजबूत स्वरूप देने वाले शुरुआती बुद्धिजीवियों में शामिल थे।
✦ डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस (1942) — चीन में भारत की मानवता का चेहरा
महाराष्ट्र के शोलापुर ज़िले में जन्मे डॉ. कोटनिस, भारतीय मेडिकल दल के सदस्य के रूप में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय चीन गए। उन्होंने युद्धग्रस्त जनता को निःस्वार्थ चिकित्सा सेवा प्रदान की और वहीं अपनी जान भी गंवा दी। चीन और भारत के बीच मैत्री का पुल बनने वाले कोटनिस आज भी दोनों देशों में सम्मानित हैं।
✦ यशवंतसिंह (1679) — मुग़ल दरबार का प्रख्यात सामंत
यशवंतसिंह उत्तर भारत के एक प्रभावशाली सामंत थे, जो औरंगज़ेब के दरबार में अपनी वीरता और रणनीतिक कौशल के लिए प्रसिद्ध थे। तत्कालीन राजनीतिक उतार–चढ़ाव में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। यद्यपि समय के साथ इनका उल्लेख कम हुआ, फिर भी इनके योगदान ने इतिहास की धारा को प्रभावित किया।
