November 22, 2024

राष्ट्र की परम्परा

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सनातन और हिन्दू धर्म हमेशा रहेगा- गुप्तेश्वर पाण्डेय

सलेमपुर/देवरिया(राष्ट्र की परम्परा) सलेमपुर के दोघड़ा में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन बिहार सरकार के पूर्व डीजीपी जगद्गुरू रामानुजाचार्य आचार्य गुप्तेश्वर जी महाराज ने कहा कि सनातन और हिन्दू धर्म हमेशा रहेगा,यह खत्म होने वाला नही।
सनातन नही रहेगा तो ये समाज भी नही रहेगा।सनातन सबको एकजुट करता है।
सनातन मिट गया तो हमारा अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
सनातन वह जीवनधारा है जो नूतन और पुरातन को आत्मसात करते हुए अनादिकाल से चलती आई है और अनंतकाल तक रहेगी।इसका कभी निर्मूलन नहीं होगा।
उन्होंने कथा का रसपान कराते हुए कहा कि भगवान किसी भी परिस्थिति में हमे भूलते नही है।
उद्धव से विदुर महाराज का मिलन होता है।
विदुर उद्धव से कहते है कि आप तो भगवान के करीबी रहे बड़े भाग्यशाली व्यक्ति हो, जो भगवत धर्म का उपदेश आपको मिला है। वही भगवत धर्म का उपदेश मुझे भी बताने की कृपा करें। उद्धव महाराज ने कहा कि विदुर जी मैं जानता हूं कि आप कोई साधारण मानव नहीं है। भगवान जब स्वभाव गमन किए तो उस समय भगवान ने किसी को याद नहीं किया। लेकिन भगवान सिर्फ आपको तीन बार याद किए कि मेरे विदुर दाना कहां है। आप तो बड़े भाग्यशाली है आप मुझे भगवत धर्म का उपदेश दे दीजिए। उद्धव जी महाराज ने कहा विदुर जी हम समय में तो बद्रीका आश्रम जा रहा हूं। आप एक काम करिए यहां से कुछ दूरी पर मैत्री ऋषि का आश्रम है।
कश्यप ऋषि जो वैदिक काल के सबसे प्रसिद्ध ऋषि माने जाते थे। ऋषि कश्यप जो की सप्त ऋषियो में शामिल है, ऋषि कश्यप ब्रह्मा के मानस पुत्र मरीचि के पुत्र थे, भागवत पुराण उनकी कुल 13 पत्निया थी।

दक्ष के सामने शिवजी का नहीं उठना

प्रचलित कथाओं के अनुसार एक बार यज्ञ का आयोजन किया गया था जहां पर सभी देवी-देवता पहुंचे थे। इस यज्ञ में जब राजा प्रजापति पहुंचे तो सभी देवी-देवताओं और अन्य राजाओं ने खड़े होकर राजा दक्ष का स्वागत किया। लेकिन शिवजी ब्रह्रााजी के साथ बैठे रहें। तब इसको देखते हुए राजा दक्ष ने इसे अपना अपमान समझा और शिव के प्रति कई तरह के अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। यही कारण था कि शिवजी और उनके ससुर राजा दक्ष की आपस में नहीं बनती।

यज्ञ में शिवजी को नहीं बुलाना

एक बार राजा दक्ष ने अपने राजमहल में एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने सभी को निमंत्रण दिया था,लेकिन शिवजी और मां सती को इस यज्ञ में नहीं बुलाया। फिर यज्ञ की बात को जानकर देवी सती बिना बुलाए अपने पिता राजा दक्ष के घर चली गईं। जहां पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव और सती का अपमान भरी सभा में सबके सामने किया। तब सती अपने पति भोलेनाथ के अपमान को सह नहीं सकीं और यज्ञस्थल पर जल रही अग्नि में कूदकर स्वयं को भस्म कर लिया था।

शिवजी का तांडव करना

जब शिवजी को सती के भस्म होने का समाचार मिला तो वे क्रोधित होकर यज्ञ स्थल पर पहुंचकर सती के अवशेषों को लेकर तांडव करने लगे। भगवान शिव ने तब वीरभद्र को उत्पन्न करके यज्ञ स्थल में मौजूद सभी को दंड देते हुए राजा दक्ष का सिर काट डाला। बाद में ब्रह्राा के द्वारा प्रार्थना करने पर शिव जी ने दक्ष प्रजापति के सिर के बदले बकरे का सिर प्रदान करके यज्ञ को पूरा किया। ऐसा माना जाता है कि वीरभद्र शिवजी के तीसरे नेत्र से प्रगट हुए थे।

ध्रुव की तपस्या से भगवान को होना पड़ा द्रवित

मनु और शतरूपा के दो पुत्र प्रियवत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नियां थीं। राजा उत्तानपाद को सुनीति से ध्रुव और सुरुचि से उत्तम नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। सुनीति बड़ी रानी थी परन्तु उत्तानपाद का प्रेम सुरुचि के प्रति अधिक था। एक बार सुनीति का पुत्र ध्रुव अपने पिता की गोद में बैठा खेल रहा था। इतने में सुरुचि वहां आ पहुंची। ध्रुव को उत्तानपाद की गोद में खेलता देख वह बर्दाश्त न कर सकी। उसका मन ईर्ष्या से जल उठा। उसने झपट कर बालक ध्रुव को राजा की गोद से खींच लिया और अपने पुत्र उत्तम को उसकी गोद में बैठा दिया। बालक ध्रुव से बोली, अरे मूर्ख राजा की गोद में वही बालक बैठ सकता है जो मेरी कोख से उत्पन्न हुआ हो। इसके बाद ध्रुव को कुछ ज्ञान उत्पन्न हुआ और वह भगवान की भक्ति करने के लिए पिता के घर को छोड़ कर चल पड़े। मार्ग में उनकी भेंट देवार्षि नारद से हुई। देवर्षि ने बालक ध्रुव को समझाया, किन्तु ध्रुव नहीं माना। नारद ने उसके दृढ़ संकल्प को देखते हुए ध्रुव को मंत्र की दीक्षा दी। इसके बाद ध्रुव ने कठिन तपस्या कर भगवान को प्रसन्न किया।उक्त अवसर पर मुख्य यजमान
काशीनाथ मिश्र,विद्याशंकर मिश्र, गुलाब देवी,अमृता मिश्रा,रविशंकर मिश्र,अजय दूबे वत्स, अखिलेश मिश्र,कमलेश मिश्र,श्रीप्रकाश मिश्र,अभिषेक मिश्र,राजेश दूबे, नरसिंह गिरी,अरविंद दूबे, कुंवर मिश्र आदि मौजूद रहे।