Thursday, December 25, 2025
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“वीर बाल दिवस से विकसित भारत तक: 26 दिसंबर और भारत की बाल शक्ति की ऐतिहासिक विरासत”

छोटे साहबजादों का स्मरण आते ही सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है व सिर श्रद्धा से झुक जाता है

साहिबजादों का बलिदान किसी एक धर्म के वर्चस्व का नहीं, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता का प्रतीक है,सभ्य समाज में आस्था का सम्मान और विकल्प की स्वतंत्रता सर्वोपरि होनी चाहिए- एडवोकेट किशन

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर आदि अनादि काल से भारत की अनेक गाथाएं इतिहास में दर्ज़ है, जिसका बखान उनके प्रकाशोत्सव वर्षगांठ या उस दुखद पल कुर्बानी दिवस के रूप में उसको याद किया जाता है। इसी कड़ी में 26 दिसंबर 2025 को सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है। छोटे साहिबजादों का स्मरण आते ही सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है और सिर श्रद्धा से झुक जाता है। देश में पहली बार पीएम के ऐलान के बाद ही 26 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी के साहस को श्रद्धांजलि देने के लिए वीर बाल दिवस पूरे देश-विदेश में मनाया जाता है। गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब उस स्थान पर खड़ा है, जहां साहिबजादों ने आखिरी सांस ली।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं क़ि साहिबजादों का बलिदान किसी एक धर्म के वर्चस्व का नहीं, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता का प्रतीक है। वीर बाल दिवस इस संदेश को रेखांकित करता है कि किसी भी सभ्य समाज में आस्था का सम्मान और विकल्प की स्वतंत्रता सर्वोपरि होनी चाहिए। यह विचार आज के वैश्विक संघर्षों और धार्मिक ध्रुवीकरण के दौर में अत्यंत प्रासंगिक है।

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26 दिसंबर 2025 को केंद्र सरकार वीर बाल दिवस मना रही हैं, जिसमें प्रधानमंत्री दिल्ली के भारत मंडपम में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार, सुपोषित पंचायत योजना शुरू करेंगे और बच्चों को संबोधित करेंगे, बाल पुरस्कार अब 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के बजाय 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के मौके पर दिए जाते हैँ। राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में बाल पुरस्कार माननीय राष्ट्रपति द्वारा बैठ जाएंगे।साथ ही देशभर के स्कूलों और संस्थानों में साहिबजादों की वीरता पर आधारित विशेष कार्यक्रम, प्रतियोगिताएं और जागरूकता गतिविधियां आयोजित की जाएंगी,जिससे बच्चों को देश के गौरवशाली इतिहास से जोड़ा जा सके,26 दिसंबर का दिन भारतीय इतिहास, सिख परंपरा और मानव सभ्यता के नैतिक मूल्यों में एक अद्वितीय अध्याय के रूप में अंकित है।

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यह केवल एक स्मृति दिवस नहीं, बल्कि साहस, धर्म, बलिदान और सत्य के लिए अडिग रहने की चेतना का वैश्विक प्रतीक बन चुका है। वीर बाल दिवस उन दो बाल वीरों बाबा जोरावर सिंह जी (9 वर्ष) और बाबा फतेह सिंह जी (7 वर्ष) की अमर शहादत को समर्पित है, जिन्होंने अत्याचार, लोभ और भय के सामने झुकने से इनकार कर दिया और अपने जीवन से मानवता को अमर संदेश दिया। सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी केवल एक गुरु नहीं, एक युग थे,गुरु गोविंद सिंहजी केवल सिखों के दसवें गुरु ही नहीं थे, बल्कि वे धर्म, न्याय और मानव गरिमा के सार्वभौमिक रक्षक थे। उन्होंने ऐसे समय में नेतृत्व किया जब धार्मिक उत्पीड़न, सत्ता का दमन और नैतिक पतन अपने चरम पर था।

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उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना कर यह स्पष्ट कर दिया कि धर्म केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि अन्याय के विरुद्ध सक्रिय संघर्ष है।गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन स्वयं में एक अंतरराष्ट्रीय नैतिक दर्शन है, जिसमें समानता, स्वतंत्रता और आत्मसम्मान के मूल्य समाहित हैं।
साथियों बात अगर हम वीर बाल दिवस के महत्व व परिभाषा संशोधन की करें तो, यह दिवस खालसा के चार साहिबजादों के बलिदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। अंतिम सिख गुरु गोबिंद सिंह के छोटे बच्चों ने अपने आस्था की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। यह उनकी कहानियों को याद करने का भी दिन और यह जानने का भी दिन है कि कैसे उनकी निर्मम हत्या की गई-खासकर जोरावर और फतेह सिंह की। सरसा नदी के तट पर एक लड़ाई के दौरान दोनों साहिबजादों को मुगल सेना ने बंदी बना लिया था।इस्लाम धर्म कबूल नहीं करने पर उन्हें क्रमशः 8 और 5 साल की उम्र में कथित तौर पर जिंदा दफन कर दिया गया था। बदली परिभाषा, अब, वीर वह है जो अंधेरों को रोशन करें सरकार ने इस बार वीरता की परिभाषा को भी परिमार्जित किया है। इसमें कहा गया है, वीर वह है जो अंधेरों को रोशन करें। इसमें केवल साहस ही नहीं दया, क्रियाशीलता, नवप्रवर्तन के साथ कुछ कर गुजरे बच्चों जो समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बनते हैं को शामिल किया गया है, ताकि इससे देश की युवा पीढ़ी और बच्चे भी ऐसा करने के लिए प्रेरित हों। सरकार का मकसद इसके जरिये समग्रता के साथ बच्चों की वीरता और कारनामों को पेश करना है। वीर सपूतों के अदम्य साहस से प्रेरणा लेना है।

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साथियों बात अगर हम 26 दिसंबर 2025 को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने व इसी दिन पीएम राष्ट्रीय बाल पुरस्कार वितरण की करें तो,पीएमआह्वान पर 2022 से 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के दो छोटे साहिबजादे 9 साल के बाबा जोरावर सिंह और उनके छोटे भाई 5 साल के बाबा फतेह सिंह की वीरता को समर्पित है।भारत में परंपरागत बाल दिवस 14 नवंबर को मनाया जाता है,जो बाल शिक्षा और विकास पर केंद्रित है। वीर बाल दिवस इस परंपरा का विकल्प नहीं, बल्कि उसका नैतिक विस्तार है। यह दिन बच्चों में साहस, सत्य, न्याय,आत्मसम्मान और मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने का अवसर देता है।

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बाल दिवस को केवल उत्सव नहीं, बल्कि मूल्य-आधारित चेतना के रूप में देखने की यह एक नई पहल है।बाल पुरस्कार की अवधारणा: वीरता का सम्मानवीर बाल दिवस पर बाल पुरस्कार देने की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पुरस्कार केवल शैक्षणिक या खेल उपलब्धियों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उन बच्चों को सम्मानित करना चाहिए जिन्होंने साहस,करुणा सामाजिक सेवा,आपदा प्रबंधन, मानवाधिकार रक्षा या नैतिक दृढ़ता का असाधारण परिचय दिया हो। ऐसे पुरस्कार बच्चों को यह विश्वास दिलाते हैं कि समाज केवल सफलता नहीं, बल्कि मूल्यों को भी सम्मान देता है।बाल पुरस्कार और वैश्विक प्रेरणा विश्व स्तर पर भी कई देश बच्चों को शांति, पर्यावरण संरक्षण और मानवाधिकारों में योगदान के लिए सम्मानित करते हैं। नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने वाली मलाला यूसुफ़ज़ई इसका प्रमुख उदाहरण हैं। वीर बाल दिवस के संदर्भ में भारत यदि अंतरराष्ट्रीय मंच पर बाल वीरता पुरस्कारों की पहल करता है, तो यह वैश्विक नैतिक नेतृत्व का प्रतीक बन सकता है।संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार सम्मेलन बच्चों के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा पर बल देता है। वीर बाल दिवस इस अंतरराष्ट्रीय ढांचे को ऐतिहासिक गहराई प्रदान करता है।

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साहिबजादों का बलिदान यह दर्शाता है कि जब बच्चों के अधिकारों का हनन होता है, तो यह केवल कानूनी नहीं,बल्कि नैतिक अपराध भी है। इस शहादत को नमन करने के लिए हर वर्ष वीर बाल दिवस के मौके पर बहादुर बच्चों को सम्मानित किया जा जाता हैं।भारत सरकार असाधारण उपलब्धियों के लिए सात श्रेणियों कला और संस्कृति, बहादुरी,नवाचार,विज्ञान और प्रौद्योगिकी, सामाजिक सेवा, खेल और पर्यावरण में बच्चों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (पीएमआरबीपी) प्रदान करती है।

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साथियों बात अगर हम वीर बाल दिवस के इतिहास की करें तो, बताते हैं कि मुगलों ने अचानक आनंदपुर साहिब के किले पर हमला कर दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों से लड़ना चाहते थे, लेकिन अन्य सिखों ने उन्हें वहां से चलने के लिए कहा। इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह के परिवार सहित अन्य सिखों ने आनंदपुर साहिब के किले को छोड़ दिया और वहां से निकल पड़े। जब सभी लोग सरसा नदी को पार कर रहे थे तो पानी का बहाव इतना तेज हो गया कि पूरा परिवार बिछड़ गया। बिछड़ने के बाद गुरु गोबिंद सिंह व दो बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह व बाबा जुझार सिंह चमकौर पहुंच गए। वहीं, माता गुजरी, दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह और गुरु साहिब के सेवक रहे गंगू गुरु साहिब व अन्य सिखों से अलग हो गए। इसके बाद गंगू इन सभी को अपने घर ले गया लेकिन उसने सरहिंद के नवाज वजीर खान को जानकारी दे दी जिसके बाद वजीर खान माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को कैद कर लिया। वजीर खान ने दोनों छोटे साहिबजादों को अपनी कचहरी में बुलाया और डरा-धमकाकर उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन दोनों साहिबजादों ने जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल के जयकारे लगाते हुए धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया। वजीर खान ने फिर धमकी देते हुए कहा कि कल तक या तो धर्म परिवर्तन करो या मरने के लिए तैयार रहो। 27 दिसंबर को अगले दिन ठंडे बुर्ज में कैद माता गुजरी ने दोनों साहिबजादों को बेहद प्यार से तैयार करके दोबारा से वजीर खान की कचहरी में भेजा। यहां फिर वजीर खान ने उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन छोटे साहिबजादों ने मना कर दिया और फिर से जयकारे लगाने लगे। यह सुन वजीर खान तिलमिला उठा और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दे दिया और साहिबजादों को शहीद कर दिया। यह खबर जैसे ही माता दादी माता गुजरी के पास पहुंची, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि गुरु गोविंद सिंह जी के छोटे साहबजादों के साहस को श्रद्धांजलि-वीर बाल दिवस 26 दिसंबर 2025 पर विशेष,छोटे साहबजादों का स्मरण आते ही सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है व सिर श्रद्धा से झुक जाता है।साहबजादों बाबा जोरावर सिंह व फतेहसिंह के सम्मान में बाल दिवस के साथ बाल पुरस्कार 26 जनवरी के स्थान पर 26 दिसंबर को देना सराहनीय निर्णय है।

-संकलनकर्ता लेखक – एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं,क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी)

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