Friday, November 14, 2025
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“हाँ हम बिहारी हैं जी” बना चुनावी पर्व की शान, सोशल मीडिया पर मचा धमाल

विदेश में रहकर भी माटी से जुड़े शैलेन्द्र, बिहारी गौरव गीत ने जीता करोड़ों दिल

सलेमपुर/देवरिया(राष्ट्र की परम्परा)

देवरिया जिले के सलेमपुर तहसील अंतर्गत चांदपालिया गाँव के युवा प्रतिभा शैलेन्द्र द्विवेदी ने बिहार विधानसभा चुनाव के बीच ऐसा गीत प्रस्तुत किया जिसने प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में धूम मचा दी। उनके गीत “माटी को सोना करने वाली कलाकारी है जी… हाँ हम बिहारी हैं जी, थोड़े संस्कारी हैं जी…” ने न केवल सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया, बल्कि बिहार की संस्कृति, भावनाओं और स्वाभिमान को भी नए अंदाज़ में सामने रखा।

देवरिया के शैलेन्द्र द्विवेदी का बनाया गीत बिहार चुनाव में छाया, “हाँ हम बिहारी हैं जी” बना नई पहचान”

मिट्टी से जुड़ाव ने बनाया ‘भोजपुरी का दूत’

शैलेन्द्र द्विवेदी ने बी.टेक करने के बाद सिंगापुर की प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी शुरू की। विदेश में रहना जितना चुनौतीपूर्ण होता है, उतना ही अपनी मिट्टी से दूर रहना भावुक भी करता है। लेकिन शैलेन्द्र अपने गाँव, अपनी भाषा और अपनी बोली—भोजपुरी—से कभी दूर नहीं हुए।
सिंगापुर में रहते हुए भी उन्होंने भोजपुरी भाषा के उत्थान को मिशन बनाकर लगातार ऐसे गीत लिखे और बनवाए जो समाज, संस्कृति और संस्कार का प्रतिनिधित्व करें।

भोजपुरी को फूहड़ता से बाहर निकालने का प्रयास

आज जब भोजपुरी गानों की छवि अक्सर फूहड़ता से जोड़ दी जाती है, वहीं शैलेन्द्र द्विवेदी ने इस सोच को बदलने का बीड़ा उठाया। उनके द्वारा बनाए गए गीतों में संस्कृति, मर्यादा और अपनी जड़ों से प्रेम झलकता है।
उनके हर गीत में एक संदेश, एक भाव, और एक सौम्यता होती है, जिसने देश-विदेश के दर्शकों का दिल जीता।

बिहार चुनाव में गीत बना आवाज़

बिहार चुनाव 2025 के दौरान शैलेन्द्र के गीत
“हाँ हम बिहारी हैं जी”
ने माहौल में जोश भर दिया। बिहार की मिट्टी, मेहनत, संघर्ष और प्रतिभा का सुंदर चित्रण करने वाला यह गीत चुनावी रैलियों से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक हर जगह छा गया।

इस गीत की टीम भी बेहद मजबूत रही—गीत निर्माता : शैलेन्द्र द्विवेदी,गीत लेखक : अतुल कुमार राय,गायक : मनोज तिवारी ‘मृदुल’,संगीत : मधुकर आनंद

मनोज तिवारी की सुरीली आवाज़ और मधुकर आनंद के संगीत ने गीत को और भी ऊर्जा से भर दिया, जबकि शैलेन्द्र द्विवेदी की सोच और संकल्प ने इसे एक सांस्कृतिक पहचान बना दिया।

देश-विदेश में मिली सराहना

यह गीत बिहार की पहचान, बिहारी गौरव और लोक-संस्कृति का जीवंत प्रतीक बनकर उभरा। लाखों दर्शकों ने इसे सुना, साझा किया और इसकी तारीफ की। प्रवासी बिहारी समुदाय ने भी इस गीत को अपने ‘दिल की आवाज़’ बताया।

भविष्य में भी भोजपुरी को नई ऊँचाइयों तक ले जाने का संकल्प

शैलेन्द्र द्विवेदी का कहना है कि वे आगे भी भोजपुरी भाषा को वैश्विक मंच तक ले जाने के लिए काम करते रहेंगे। उनका सपना है कि भोजपुरी को वह सम्मान मिले जिसकी वह सच्चे अर्थों में हकदार है।

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