
बलिया(राष्ट्र की परम्परा)
समूचे विश्व में हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है। इस दिन थैलेसीमिया रोग के प्रति जागरूकता बढ़ाने, इसके लक्षण, निदान और उपचार के विकल्पों के बारे में लोगों को शिक्षित करने के मुख्य उद्देश्य के साथ मनाया जाता है। थैलेसीमिया खून से जुड़ा एक गंभीर रोग है, जिसमें व्यक्ति के शरीर में हीमोग्लोबिन बनना बंद हो जाता है। यह बीमारी पेरेंट्स से बच्चों तक पहुंचती है। थैलेसीमिया को भारत सरकार द्वारा दिव्यांगजन अधिनियम 2016 में इसे एक दिव्यांगता के श्रेणी में रखा गया।
थैलेसीमिया के लक्षण:- छाती में दर्द होना और दिल की धड़कन का सही से न चलना, बच्चों के नाख़ून और जीभ पिली पड़ जाने से पीलिया का भ्रम पैदा हो जाता है, हाथ और पैर का ठंडा होना, सिरदर्द होना, चक्कर आना और बेहोशी का होना, पैरों में ऐंठन होना, सूखता चेहरा, वजन न बढ़ना, हमेशा बीमार नजर आना, सांस लेने में तकलीफ होना आदि।
रोकथाम एवं उपचार
थैलेसीमिया रोग के उपचार के लिए रोगी को नियमित रक्त चढाने की आवश्यकता होती है। कुछ रोगियों को हर 10 से 15 दिन में रक्त चढ़ाना पड़ता है। अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण, (Bone Marrow Transplant) और मूल कोशिका ; (Stem Cell) का उपयोग कर बच्चों में इस रोग को रोकने पर शोध किया जा रहा है । इनका उपयोग कर बच्चों में इस रोग को रोका जा सकता है। केलेशन थेरेपी ; (Chelation Therapy) बार-बार रक्त चढाने से और लौह तत्व की गोली लेने से रोगी के रक्त में लौह तत्व की मात्रा अधिक हो जाती है। जिगर, प्लीहा ; (Liver, Spleen) तथा ह्रदय में जरुरत से ज्यादा लौह तत्व जमा होने लगता है जिससे ये अंग सामान्य कार्य करना छोड़ देते है। रक्त में जमे इस अधिक लौह तत्व को निकालने के प्रक्रिया के लिए इंजेक्शन और दवा दोनों तरह के ईलाज कराए जाते है।
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