भागलपुर/देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)। गांव में पेयजल कि आज का समस्याएं बढ़ती जा रही है हर कोई सक्षम नहीं जो अपने यहां नल की व्यवस्था कर सके।*गाँव के लोकतांत्रिक अनुभव में यह विडंबना स्पष्ट दिखाई देती है कि संघर्षशील, ईमानदार और करमत युवा प्रत्याशियों को चुनने के बाद भी अपेक्षित विकास नहीं हो पाया। लोगों ने सुयोग्य चेहरों पर भरोसा किया, उनसे उम्मीद की कि वे गाँव की तस्वीर बदलेंगे, चौमुखी विकास का सपना साकार करेंगे। लेकिन वर्षों के इंतजार और अधूरे वादों ने जनता के मन में निराशा भर दी है।आज हालात इतने बदल गए हैं कि ग्रामीण समाज यह सोचने लगा है—“शायद अब किसी बेईमान प्रत्याशी को ही आज़मा लिया जाए।” यह सोच लोकतांत्रिक चेतना के लिए चिंताजनक है, परंतु यह जनता के टूटे हुए विश्वास का सजीव प्रमाण भी है। ईमानदार नेताओं की छवि साफ हो सकती है, लेकिन जब वह केवल भाषण और नैतिकता तक सीमित रह जाए, तब जनता को परिणामहीन आदर्शवाद से मोहभंग होना स्वाभाविक है।
बेईमान प्रत्याशी अक्सर अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए ही सही, विकास कार्यों को गति देते हैं। सड़क, पुल, नाली या अन्य योजनाएँ भले ही आधी-अधूरी हों, लेकिन जनता को कुछ न कुछ लाभ अवश्य मिलता है। यही कारण है कि आम लोग यह मानने लगे हैं कि यदि बेईमानी से भी विकास संभव है तो क्यों न उसे ही चुना जाए।
यह मानसिकता लोकतंत्र की असफलता का संकेत है। क्योंकि वास्तविक उद्देश्य केवल चुनाव जीतना या तात्कालिक लाभ नहीं, बल्कि पारदर्शी और टिकाऊ विकास होना चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि ईमानदार नेतृत्व केवल नैतिकता का नहीं, बल्कि परिणाम का भी परिचय दे। जनता को यह भरोसा दिलाना होगा कि ईमानदारी और विकास साथ-साथ चल सकते हैं।अन्यथा, यदि विश्वास पूरी तरह से टूटा, तो गाँव का लोकतंत्र आदर्शवाद से भटककर समझौते और बेईमानी की राह पर चला जाएगा—और यह केवल गाँव ही नहीं, बल्कि राष्ट्र के भविष्य के लिए भी गहरी चिंता का विषय होगा।

• प्रदीप कुमार मौर्य