Wednesday, December 3, 2025
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जब जरूरतें बन जाएं मजबूरी: महंगाई और मध्यम वर्ग का संघर्ष

अर्थव्यवस्था (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। रोजमर्रा की जरूरतों पर बढ़ता बोझ, मध्यम वर्ग की सबसे बड़ी चुनौती बनी महंगाई महंगाई अब केवल आँकड़ों का विषय नहीं रही, यह हर घर की दीवारों के भीतर महसूस की जाने वाली सच्चाई बन चुकी है। बढ़ती कीमतें आज सिर्फ बाजार की खबर नहीं, बल्कि रसोई, स्कूल, अस्पताल और बिजली के मीटर तक पहुँचकर हर परिवार की प्राथमिकताओं को नई दिशा में मोड़ रही हैं। जिस देश की अर्थव्यवस्था कभी “बचत और निवेश” की संस्कृति पर टिकी थी, आज वही परिवार पहले “जरूरत और मजबूरी” के बीच संतुलन बनाने में उलझे हुए हैं।

सब्ज़ियाँ, दाल, दूध, गैस सिलेंडर, बच्चों की कॉपी-किताबें, मकान का किराया, पेट्रोल-डीज़ल और दवाइयाँ—हर जरूरी वस्तु की कीमत में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी ने आम आदमी का मासिक बजट बिगाड़ दिया है। जो चीजें कभी सामान्य मानी जाती थीं, वे अब “लक्ज़री” जैसी लगने लगी हैं। कई परिवारों ने बाहर का खाना, मनोरंजन, यात्रा और नई खरीदारी जैसे खर्च लगभग बंद कर दिए हैं।

मध्यम वर्ग, जिसे देश की आर्थिक रीढ़ माना जाता है, आज सबसे अधिक दबाव में है। एक ओर आय में कोई खास बढ़ोतरी नहीं, दूसरी ओर खर्च हर महीने बढ़ते जा रहे हैं। नतीजा यह है कि लोग बचत की बजाय उधारी और ईएमआई पर जीवन गुजारने को मजबूर हो रहे हैं। बच्चों की बेहतर शिक्षा, घर खरीदने का सपना या भविष्य के लिए निवेश – सब अब टालने की सूची में आ चुके हैं।

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महंगाई का असर सिर्फ पैसों तक सीमित नहीं है, इसका प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य और पारिवारिक रिश्तों पर भी पड़ रहा है। घर में तनाव, चिंता और असंतुलन बढ़ रहा है। पति-पत्नी के बीच बहस का कारण अब अक्सर खर्चा बन जाता है। बुजुर्गों की दवाइयों और बच्चों की फीस के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती बन चुका है। कई परिवारों में युवा वर्ग अतिरिक्त नौकरी या साइड इनकम के विकल्प तलाशने लगा है, ताकि घर का खर्च किसी तरह पूरा हो सके।

ग्रामीण इलाकों की स्थिति और भी कठिन हो गई है। खेती से मिलने वाली आय सीमित है, वहीं खाद, बीज, डीज़ल और बिजली का खर्च कई गुना बढ़ गया है। इससे कृषि आधारित परिवार भी कर्ज के जाल में उलझते जा रहे हैं। शहरों में नौकरीपेशा लोग किराया, ट्रांसपोर्ट और राशन की कीमतों से परेशान हैं।

अर्थशास्त्रियों के अनुसार, महंगाई का सीधा संबंध अंतरराष्ट्रीय बाजार, कच्चे तेल की कीमत, आयात-निर्यात और सरकारी नीतियों से होता है। लेकिन इसका सीधा असर आम जनता पर पड़ता है। जब महंगाई बढ़ती है, तो लोगों की क्रय शक्ति घटती है, मांग कम होती है और अंततः अर्थव्यवस्था की गति भी प्रभावित होती है।

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हालाँकि, कुछ परिवार अब नई रणनीतियाँ अपनाने लगे हैं – जैसे घरेलू बजट बनाना, ऑनलाइन ऑफर्स का उपयोग, लोकल उत्पादों को प्राथमिकता देना और अनावश्यक खर्चों में कटौती। कई लोग अब निवेश की जगह खर्च प्रबंधन पर ध्यान दे रहे हैं।

महंगाई ने यह सिखा दिया है कि भविष्य की सुरक्षा सिर्फ पैसे से नहीं, बल्कि सही आर्थिक योजना से आती है। जरूरत है कि सरकार और नीति निर्माता आम जनता की इस पीड़ा को समझें और ऐसी नीतियाँ बनाएं जो महंगाई पर नियंत्रण के साथ-साथ आय बढ़ाने के अवसर भी पैदा करें।

महंगाई केवल कीमतों की बढ़ोतरी नहीं, यह जीवनशैली में बदलाव, मानसिक दबाव और सामाजिक ढांचे में परिवर्तन का प्रतीक बन चुकी है। अगर इस पर समय रहते नियंत्रण नहीं पाया गया, तो यह आने वाली पीढ़ियों के सपनों को भी महंगा बना देगी।

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