
बिहार(राष्ट्र की परम्परा)l पत्नी को संग का विषय न बनाये बल्कि सत्संग का साधन बनाए, तो कपिल जैसे पुत्र के रुप में भगवत दर्शन होते हैं। अपनी मति को शास्त्र संगत रखें तो ध्रुव जैसे भक्त पुत्र को पा सकते हैं और आत्म कल्याण हो जायेगा।
उक्त बातें आचार्य विनय शास्त्री ने समउर बाजार से सटे सीमावर्ती बिहार प्रांत के भगवानपुर गांव में श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन रविवार की रात्रि कपिल मुनि व भक्त प्रहलाद के प्रसंग के माध्यम से श्रद्धालुओं को सत्संग का महात्म्य बताते हुए कही।
उन्होंने कहा कि कलयुग में मनुष्य अपने भावों को सत्संग के जरिए ही स्थिर रख सकता है। सत्संग के बिना विवेक उत्पन्न नहीं हो सकता और बिना सौभाग्य के सत्संग सुलभ नहीं हो सकता।
पं. गिरीश नारायण मिश्र, पं नंद पाठक ने परायण किया। रमेश श्रीवास्तव, संत व राजू दास ने संगीत पर संगत की। इस दौरान यजमान कृपाशंकर गिरी, शंभू गिरी, तेज बहादुर गिरी, प्रमोद गिरी, संजय, संदीप सुनीता, गीता, आरती,उमरावती गिरी, सुरेन्द्र पाण्डेय, रवीन्द्र पाण्डेय, रामाधार गिरी, संत यादव, गोपीचन्द्र यादव, जमुना यादव, कवींद्र, गोविंद,मनोज, रामायण गिरी आदि उपस्थित रहे।
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