
भूल गए वो मित्र हमारे,
जो रोज़ खबर ले लेते थे,
ऐसी याद बिसारी मेरी जैसे
कान्हा गोकुल छोड़ गए थे।
कहना ऊधव जाकर उनसे
गोकुल की गलियाँ सूनी हैं,
अब तो वापस आ भी जाओ,
और अधिक अब मत तरसाओ।
कृष्ण तुम्हारे बिन यमुना के
सब साहिल सूने लगते हैं,
गायें गोकुल वृंदावन की,
बछड़ों से अब बिछुड़ी हैं।
सुबह सवेरे वंशी की धुन
सुनने को सभी तरसते हैं,
कानन कुंजन भँवरे गुंजन,
अब सभी अनमने लगते हैं।
विरह मिलन में अब बदलो
कृष्ण कन्हाई तेरी जुदाई,
गोपी ग्वाले सब गोकुल के
सदा पुकारें कृष्ण कन्हाई।
तान सुना दो मोहन मुरलिया,
द्वारका बसे अब वृंदावन में,
आदित्य मधुर मृदु कोकिल
कूके एक बार फिर गोकुल में।
- कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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