ग्रामीणों ने उत्तर प्रदेश सरकार की भूरी भूरी प्रशंसा की
बरहज/देवरिया(राष्ट्र की परम्परा)l उत्तर प्रदेश सरकार ने तेलिया अफगान गाँव का नाम बदलकर, तेलिया शुक्ला रखाl इस पर ग्रामवासियों ने प्रदेश सरकार की भूरि भूरि प्रशंसा की हैं।
आइए जानते है क्या है तेलिया अफगान का इतिहास जाने, लोगो द्वारा बताया गया कि, मुगल कालीन समय में मुगल शासक सरयू नदी के किनारे बसे तेलिया अफगान, पर अपना अधिपत्य जमा कर रहा करते थे। जबकि की सरयू नदी के किनारे इस गांव में, घना जंगल हुआ करता था, जहां पर पशु, पक्षियों का शिकार बड़े आसानी से लोग करते थे, मुगल शासक जब से अधिपत्य जमा कर यहां रहने लगे, तब से उनको खाने के लिए बड़े आसानी से जानवरो का शिकार करते थे,और दक्षिण की तरफ सरयू नदी के होने से आसानी से पीने का पानी मिल जाता था, अतः इनको किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होती थी, और यही से इनका व्यापार चलता था। इसी प्रकार से समय बीतता गया। और वर्षो बाद एक साधु सरयु नदी के किनारे, आकर तेलिया अफगान गांव के सामने अपनी एक छोटी सी कुटिया बनाकर रहने लगे। लेकिन लोगो द्वारा बताया जा रहा है कि, कुछ समय व्यतीत हो जाने के बाद साधु की कुटिया के सामने मुगल मांस, मछली खाकर हड्डी और कांटा कुटिया के सामने फेक दिया करते थे, जिससे नाराज होकर साधु एक दिन अपनी तपस्या से अपने शरीर को जला डाला था एवं मरते समय यह श्राप दिया कि, यहां से सभी मुगलों का नाश हो जाएगा, तब से सभी मुगल कुष्ठ रोग से पीड़ित होकर यहा से कहा गए किसी को पता नहीं,इस तरह से मुगलो का शासन समाप्त हो गया एवं शुक्ला लोग यहां पर रहने लगे, आज भी यहां पर चैत के रामनवमी एवं नवरात्रि के समय में रामनवमी के दिन, भोरेनाथ ब्रह्म का पूजा होता है, यहां पर चैत एवं कुँआर में 1 महीने तक मेला लगता है, और ब्रह्म का पूजा होता है। यहां पर जो लोग श्रद्धा के साथ अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, उनकी मनोकामना निश्चित ही पूर्ण होती है, इसमें कोई संदेह की बात नहीं है।
यहां के लोग मुगल काल से ही तेलिया अफगान को तेलिया शुक्ला बनाने के लिए लगातार विभाग के अधिकारियों का चक्कर लगा रहे थे, लेकिन सदियों बीत जाने के बाद भी तेलिया अफगान का नाम नहीं हट पाया था किन्तु प्रदेश की योगी सरकार ने तेलिया अफगान का नाम बदलकर, तेलिया शुक्ला कर दिया है। जिससे तेलिया शुक्ला के लोग अपने पूर्वज भोरेनाथ ब्रह्म,को कोटि कोटि प्रणाम करते, थक नही रहे हैं।
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