
महराजगंज(राष्ट्र की परम्परा)। रूहानी ताकतों के मालिक, लोगों को सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाले,सूफी सन्त हरेभरे शाह उर्फ हरियरा बाबा का मजार लोगों की गहनआस्था का केन्द्र है। लक्ष्मीपुर विकास खंड के मोगलहा स्थित हरियरा बाबा की मजार पर हर साल हजारों की संख्या में जायरीन पहुंच कर बाबा की चौखट को चूमते हैं और मन्नत मांगते हैं । मान्यता है कि यहां पर मांगी गयी मुराद अवश्य पूरी होती है । इस साल बाबा का 40वां उर्स व मेला 22से 24 नवम्बर को है ।
नाटा कद, हरा लिबास एक हाथ में बधना, दूसरे हाथ में माला लिए बाबा सदैव ताल,पोखरियों, नदी ,तालाबों, खेत , खलिहानों में घूमते रहते थे। बाबा एकान्त प्रिय थे। बाबा हर व्यक्ति को मनईया कहते थे। बाबा कभी दुआ ताबीज नही करते ।चलते -फिरते अपनी ही धुन में किसी को कुछ कह देते तो वह अवश्य पूरा हो जाता था।बाबा का वास्तविक नाम खैरूल्लाह शाह था लेकिन उनके हरे लिबास के कारण लोग उन्हे हरियरा बाबा कहने लगे। बताया जाता है कि बाबा वर्ष 1965-66 में न जाने कहा से घूमते हुए बाबा मोगलहा आ गए और लोगों को सत्यमार्ग पर चलने का उपदेश देने लगे। उनसे प्रभावित होकर गांव के ही औरंगजेब व अखरूज्जमा नामक दो भाई उनके मुरीद हो गए और बाबा उन्ही के घर पर रहने लगे । बाबा के लिए दिन रात का कोई महत्व नही था । बाबा कब आते और कब चले जाते कोई जान नही पाता ।
बाबा सफीपुर के रूहानी ताकतों के मालिक हजरत समीउल्लाह शाह उर्फ बस्सन मियाँ के मुरीदे खास थे और उन्ही के आदेश पर घूम -घूम कर लोगों को सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते रहते थे।
मोगलहा निवास के दौरान ही बाबा ने अपने पीर हजरत बस्सन मियाँ के आदेश पर पीरों के पीर हजरत अब्दुल कादिर जिलानी का उर्स आरंभ किया । जिसमें गांव के ही कृष्ण नारायण लाल, मशीउल्लाह, सलीम, राजन राय, समसुद्दोहा आदि को क़व्वाली गाने के लिए बुलाया । आज भी उर्स का आरंभ इन्ही की क़व्वाली से होता है । अपने अन्तिम उर्स में ही बाबा ने अपने लिए मजार की नीव डलवा दी और अपने मुरीद औरंगजेब शाह को सज्जादानशीन घोषित कर दिया । आज भी बाबा के उर्स पर बहुत भारी भीड़ इकट्ठा होती है शासन प्रशासन द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतजाम भी होते हैं।
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