नवनीत मिश्र
भारतीय संस्कृति में तुलसी केवल एक पौधा नहीं, बल्कि आस्था, आयुर्वेद और पर्यावरण संरक्षण का जीवंत प्रतीक है। तुलसी पूजन दिवस हमें उस परंपरा की याद दिलाता है, जिसमें प्रकृति को देवत्व प्रदान कर मानव जीवन को संतुलन और स्वास्थ्य से जोड़ा गया है। यह दिवस श्रद्धा के साथ-साथ वैज्ञानिक सोच और पर्यावरणीय जिम्मेदारी का भी संदेश देता है।
हिंदू परंपरा में तुलसी को विष्णु प्रिया और लक्ष्मी स्वरूपा माना गया है। घर के आंगन में तुलसी का पौधा सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। प्रातःकाल तुलसी पूजन से मन की शुद्धि, आत्मिक शांति और संस्कारों का विकास होता है। तुलसी विवाह, कार्तिक मास और एकादशी जैसे पर्वों में तुलसी का विशेष स्थान भारतीय जीवन दर्शन को दर्शाता है, जहाँ प्रकृति और ईश्वर एक-दूसरे से अलग नहीं हैं।
आयुर्वेद में तुलसी को ‘संजीवनी बूटी’ कहा गया है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, श्वसन रोगों, जुकाम, खांसी, बुखार और मानसिक तनाव में अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। तुलसी की पत्तियों में मौजूद औषधीय गुण न केवल शरीर को स्वस्थ रखते हैं, बल्कि मानसिक संतुलन भी प्रदान करते हैं। आज के प्रदूषित वातावरण में तुलसी का सेवन और उसका सान्निध्य स्वास्थ्य के लिए वरदान सिद्ध हो सकता
तुलसी पूजन दिवस हमें पर्यावरण के प्रति जागरूक करता है। तुलसी का पौधा वातावरण को शुद्ध करने में सहायक है और ऑक्सीजन की गुणवत्ता बढ़ाता है। जब हम तुलसी की पूजा करते हैं, तो अनजाने में ही हम पौधारोपण, संरक्षण और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता का संस्कार भी अपनाते हैं। यह दिवस केवल पूजा तक सीमित न रहकर हरित जीवन शैली अपनाने की प्रेरणा देता
आज जब जीवन तेजी से तकनीक-केंद्रित हो गया है, तुलसी पूजन दिवस हमें जड़ों से जुड़ने का अवसर देता है। यह दिन संदेश देता है कि विकास और परंपरा में संतुलन आवश्यक है। तुलसी का संरक्षण केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी भी है।
तुलसी पूजन दिवस भारतीय जीवन दर्शन की उस समग्र सोच का प्रतीक है, जिसमें धर्म, स्वास्थ्य और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं। तुलसी का सम्मान करना दरअसल जीवन, स्वास्थ्य और पृथ्वी का सम्मान करना है। यदि हम इस दिवस के संदेश को आत्मसात करें, तो न केवल हमारी संस्कृति सशक्त होगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ और संतुलित पर्यावरण भी प्राप्त होगा।
