Sunday, December 21, 2025
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भारतीय चावल और कनाडाई खाद पर नए टैरिफ लगाने के संकेत, अमेरिकी किसानों की शिकायत पर भड़के ट्रंप

वॉशिंगटन (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दिया है कि उनकी सरकार जल्द ही भारत से आने वाले चावल और कनाडा से आयातित खाद (फर्टिलाइजर) पर नए टैरिफ लगा सकती है। यह कदम अमेरिकी किसानों की बढ़ती शिकायतों के बाद उठाया जा सकता है, जो पिछले कई महीनों से विदेशी आयात के कारण नुकसान का आरोप लगा रहे हैं।

व्हाइट हाउस में आयोजित एक गोलमेज बैठक के दौरान ट्रंप ने कहा कि भारत, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों से कम कीमत वाले चावल की “डंपिंग” अमेरिकी किसानों को प्रभावित कर रही है। इसी बैठक में उन्होंने अमेरिकी किसानों के लिए 12 अरब डॉलर के नए सहायता पैकेज की भी घोषणा की।

भारतीय चावल पर “डंपिंग” जांच के संकेत

ट्रंप ने कहा कि सरकार इस बात की जांच करेगी कि क्या विदेशों से आने वाला चावल जानबूझकर कम कीमत पर अमेरिकी बाजार में उतारा जा रहा है। उन्होंने कहा:

“उन्हें डंपिंग नहीं करनी चाहिए। मैंने यह सुना है और इसकी जांच की जाएगी। आप ऐसा नहीं कर सकते।”

अमेरिकी किसान लगातार दावा कर रहे हैं कि भारतीय और दक्षिण-पूर्व एशियाई चावल की वजह से स्थानीय चावल की कीमतों में गिरावट आई है।

कनाडाई खाद पर ‘बहुत कड़े’ टैरिफ की चेतावनी

कनाडा से बड़े पैमाने पर आयात होने वाली खाद पर भी ट्रंप ने कठोर रुख दिखाया। उन्होंने कहा कि यदि घरेलू उद्योग को बचाने की जरूरत पड़ी तो कनाडाई उर्वरक पर “बहुत कड़े टैरिफ” लगाए जा सकते हैं।

“हम अपने घरेलू उत्पादन को मजबूत करना चाहते हैं, और जरुरत पड़ी तो कनाडाई फर्टिलाइजर पर भारी टैरिफ लगाए जाएंगे।”

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भारत और कनाडा के साथ व्यापार तनाव बढ़ने के संकेत

ट्रंप प्रशासन इस साल पहले ही भारत पर 50% तक के टैरिफ लगा चुका है। इस सप्ताह एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल भारत की यात्रा पर आ रहा है, लेकिन किसी बड़े समाधान की संभावना कम मानी जा रही है।
कनाडा के साथ भी ट्रंप कई बार व्यापार समझौते की समीक्षा की चेतावनी दे चुके हैं। ताज़ा बयान दोनों देशों के साथ व्यापारिक तनाव बढ़ने का संकेत देते हैं।

किसान बने चुनावी रणनीति का केंद्र

अमेरिकी किसान हे ट्रंप के प्रमुख समर्थक माने जाते हैं। बढ़ती लागत और विदेशी आयात की प्रतिस्पर्धा से परेशान किसान लगातार सरकार पर दबाव बना रहे हैं। नए टैरिफ और सहायता पैकेज को चुनावी वर्ष में किसानों को साधने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है।

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