विवेक को कर्म में बदलने का साहस रखते थे प्रो. राधेमोहन मिश्र : प्रो. चित्तरंजन मिश्र
गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। पूर्व कुलपति प्रो. राधेमोहन मिश्र ने विश्वविद्यालय के सभी पदों पर रहते हुए नवाचार किया और उस पद के अनुरूप एक रचनात्मक व्यवस्था स्थापित की। प्रो. मिश्र जिस बात को समझ लेते थे उसे करने के लिए जिद कर लेते थे। वे समय समय पर अपनी समझ को विस्तारित और चरितार्थ करते रहे। उनमें विवेक को कर्म में बदलने का साहस था। उनकी जिद सार्थक जिद थी। सेवानिवृत्त होने के बाद वे सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे। उन्होंने न केवल रसूलपुर में गरीब बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था की बल्कि देवरिया में सई नदी को जीवित करने का प्रयास किया। वे असहमतियों का आदर करते थे। विश्वविद्यालय के भौतिक कलेवर को बदलने में उनका योगदान अविस्मरणीय है।”
उक्त बातें दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के पूर्व कुलपति प्रो. राधेमोहन मिश्र की स्मृति में संवाद भवन में आयोजित श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए प्रो. चित्तरंजन मिश्र ने कही।
शहर के प्रतिष्ठित अधिवक्ता अशोक नारायण धर दुबे ने इन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि राधेमोहन जी युवाओं को प्रथम पंक्ति में लाने की कोशिश करते रहे।
इसी क्रम में प्रो. अनंत मिश्र ने उन्हें अपना श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि वे विश्वविद्यालय में पढ़ाई लिखाई का वातावरण बनाने वाले थे और पढ़ने लिखने वालों का सम्मान करते थे।
विधि संकाय के अध्यक्ष एवं अधिष्ठाता प्रो. अहमद नसीम ने मिश्र जी के बारे में अपने अनुभवों को साझा किया और उन्हें दृढ़ स्वभाव वाला और अनुशासित व्यक्तित्व का धनी बताया।
प्रो. रजनीकांत पाण्डेय, पूर्व कुलपति, सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, सिद्धार्थनगर ने कहा कि उन्होंने यह सीख दी है कि संस्था के प्रति प्रतिबद्धता पहले होनी चाहिए।
प्रो. राजवंत राव, अधिष्ठाता, कला संकाय ने प्रो. राधेमोहन को स्मरण करते हुए कहा कि प्रतिबद्धता एवं निष्ठा उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी। भक्ति, ज्ञान और कर्म तीनों का अद्भुत समन्वय था।
प्रो. सुषमा पाण्डेय ने कहा कि मिश्र जी का जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति है।
हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. कमलेश कुमार गुप्त ने प्रो. राधेमोहन मिश्र को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि इनकी सामाजिक सक्रियता और लोकप्रियता के अनेक उदाहरण मौजूद हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि हिंदी के एक प्रतिष्ठित अखबार के पत्र वाले कालम में राधेमोहन मिश्र जी को कुलपति बनाए जाने की मांग की जाती थी। यह उनकी लोकप्रियता का सजीव प्रमाण है।
प्रो. राधेमोहन जी के बड़े बेटे अनुराग मिश्र ने अपने पिता को श्रद्धा सुमन अर्पित किया। अर्थशास्त्र विभाग के आचार्य प्रो. करुणाकर राम त्रिपाठी ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य से श्रद्धांजलि अर्पित की।
भगवान सिंह ने इस कार्यक्रम का संचालन किया और उन्होंने प्रो. राधेमोहन मिश्र के जीवनवृत्त का वाचन किया।
इस अवसर पर प्रति कुलपति प्रो. शांतनु रस्तोगी, प्रो अनुभूति दूबे, प्रो अजय कुमार शुक्ल, प्रो. सुग्रीव नाथ तिवारी, प्रो. विमलेश मिश्र, प्रो अजय सिंह, प्रो. दीपक प्रकाश त्यागी, प्रो. आलोक गोयल, डॉ. मनीष पांडेय, प्रो.अनुराग द्विवेदी, प्रो. दिव्या रानी सिंह, प्रो सुधा यादव, प्रो. गौरहरि बेहरा, प्रो. सुनीता मुर्मू, प्रो. सुधा यादव, प्रो. उमेश नाथ त्रिपाठी, प्रो निखिल कांत शुक्ल, प्रो रविकांत उपाध्याय, प्रो अजय सिंह, प्रो वीना बत्रा कुशवाहा, प्रो जितेंद्र मिश्र, प्रो गोपाल प्रसाद, डा धर्मव्रत तिवारी, प्रो करुणाकर राम त्रिपाठी, डा मनोज द्विवेदी, प्रो नन्दिता सिंह, प्रो आलोक गोयल, प्रो मनीष मिश्र, प्रो दिनेश यादव, प्रो राजर्षि कुमार गौर, प्रो मनीष श्रीवास्तव, डा उपेंद्र त्रिपाठी, छात्र संघ उपाध्यक्ष डॉ महेंद्र राय, समेत नगर के अनेक गणमान्य अतिथि एवं विश्वविद्यालय के कर्मचारी उपस्थिति रहे। पूर्व कुलपति के दोनो पुत्र अनुराग मिश्र तथा अनुपम मिश्र भी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के अंत में प्रो. शरद मिश्र, जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया व संचालन प्रो. भगवान सिंह एवं प्रो. विमलेश मिश्र ने किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में विश्वविद्यालय के सभी शिक्षकों, कर्मचारियों एवं नागरिकों ने प्रो. राधेमोहन मिश्र जी के चित्र पर पुष्प अर्पित करके सभी ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
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