Saturday, December 20, 2025
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समय, तकनीक और तरंगों पर सवार जीवन: बदलते युग में मानव अस्तित्व की नई चुनौतियां

डॉ. सतीश पाण्डेय
महराजगंज (राष्ट्र की परम्परा)। इक्कीसवीं सदी का मानव जीवन समय, तकनीक और निरंतर उठती सूचना-तरंगों के बीच तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। समय की रफ्तार पहले से कहीं अधिक तेज हो चुकी है और तकनीक ने इस गति को अभूतपूर्व रूप से बढ़ा दिया है। आज का समाज ऐसे दौर में प्रवेश कर चुका है, जहां हर क्षण परिवर्तनशील है—विचार, कार्यशैली, सामाजिक संरचना और पारिवारिक संबंध निरंतर नए स्वरूप में ढल रहे हैं।

तकनीकी विकास ने जीवन को अधिक सुविधाजनक और प्रभावी बनाया है, लेकिन इसके साथ ही स्थिरता, संतुलन और मानसिक शांति पर गंभीर प्रश्न भी खड़े कर दिए हैं। डिजिटल युग में बदलाव जितना तेज है, उतनी ही तेजी से मनुष्य आंतरिक दबाव और मानसिक थकान का अनुभव कर रहा है।

तकनीक ने बदली समय की परिभाषा

तकनीक ने समय की अवधारणा को पूरी तरह बदल दिया है। जो कार्य पहले घंटों, दिनों या महीनों में पूरे होते थे, वे अब कुछ ही सेकेंड में संभव हो गए हैं। मोबाइल फोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया और कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने सूचना की ऐसी तीव्र तरंगें पैदा की हैं, जो दिन-रात मानव मस्तिष्क को प्रभावित कर रही हैं।यह सूचना प्रवाह जहां ज्ञान और अवसरों के नए द्वार खोल रहा है, वहीं मन को ठहराव देने में असफल भी साबित हो रहा है। परिणामस्वरूप आज का इंसान समय की कमी से नहीं, बल्कि समय के निरंतर दबाव से जूझ रहा है।

सामाजिक और पारिवारिक संबंधों पर प्रभाव

इस तकनीकी दौड़ का सबसे गहरा असर सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों पर दिखाई देता है। संवाद के साधन पहले से कहीं अधिक बढ़े हैं, लेकिन संवाद की गहराई और संवेदनशीलता में कमी महसूस की जा रही है।एक ही छत के नीचे रहने वाले परिवारजन भी अपने-अपने डिजिटल संसार में व्यस्त हैं। रिश्ते स्क्रीन तक सीमित होते जा रहे हैं और भावनात्मक जुड़ाव कमजोर पड़ रहा है, जो सामाजिक ताने-बाने के लिए एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है।

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विवेक और संतुलन ही समाधान

समय और तकनीक की इन तरंगों के बीच सबसे अहम सवाल यह है कि क्या मनुष्य केवल इनके साथ बहता हुआ यात्री बनकर रह जाएगा, या इन तरंगों को दिशा देकर अपने जीवन को सार्थक बनाएगा। इसका उत्तर विवेक, संतुलन और आत्मचिंतन में निहित है।

तकनीक मानव जीवन का साधन है, लक्ष्य नहीं। यदि तकनीकी प्रगति के साथ मानवीय मूल्य, संवेदनाएं और नैतिकता सुरक्षित रखी जाएं, तो यही तरंगें विकास, संवाद और मानवता के विस्तार का सशक्त माध्यम बन सकती हैं।

वास्तव में, समय, तकनीक और तरंगों पर सवार जीवन तभी सुरक्षित और अर्थपूर्ण है, जब उसकी दिशा मानव कल्याण की ओर हो। अन्यथा सुविधाओं से भरी यह यात्रा भीतर से खाली और उद्देश्यहीन बनकर रह जाएगी।

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