Thursday, December 11, 2025
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जो अमेरिका से करें प्यार, वे डॉलर से कैसे करें इंकार

व्यंग्य-आलेख संजय पराते

डॉलर चढ़ रहा है और रुपया लुढ़क रहा है। रूपये के चढ़ने से डॉलर लुढ़के या न लुढ़के, लेकिन अर्थशास्त्र की भाषा में, डॉलर के चढ़ने का अर्थ ही रुपए का लुढ़कना होता है। तो मित्रों, आज की बासी खबर यह है कि डॉलर चढ़ रहा है और रुपया लुढ़क रहा है। पिछले 11 साल से रुपया लुढ़क रहा है। मोदी सरकार की पूरी कोशिश के बावजूद, रुपया लुढ़क रहा है। पिछले 11 सालों में आया ऐसा कोई दिन याद नहीं आता, जब रुपया लुढ़कने की बजाय चढ़ा हो। लुढ़कते-लुढ़कते उसने 90 की सीमा पार कर ली है। अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि फिलहाल तो इसे ही अच्छे दिन मानो भाई, और उन दुर्दिनों की कल्पना करो, जब यह लुढ़कते-लुढ़कते 100 की सीमा पार कर जाएगा।

2013-14 की बात है। उस समय प्रधानमंत्री कोई मौन-से व्यक्ति मनमोहन सिंह थे। रुपया तब भी लुढ़क रहा था। लुढ़कते-लुढ़कते 58 की सीमा पार कर गया था। बड़ी किरकिरी हो रही थी, लेकिन न डॉलर को दया आई और न रुपये को। न डॉलर ने चढ़ना बंद किया, न रूपया ने लुढ़कना। हां, इन-कमिंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जरूर चढ़ बैठे। उनका आरोप था, रुपया अस्पताल में है, आईसीयू में भर्ती है। जनता ने रुपया को आईसीयू से निकालने के लिए पूरा जोर लगा दिया, क्योंकि रुपया देश की ईज्जत का प्रतीक है। रूपये का लुढ़कना देश की ईज्जत का गिरना था, देश की ईज्जत का गिरना जनता के स्वाभिमान का मिट्टी में मिलना था। पाकिस्तान को मिट्टी में मिलाने वाली जनता को यह स्वीकार नहीं था। रूपये को बचाने की खातिर उन्होंने मनमोहन को लुढ़का दिया। मोदी सत्ता में चढ़ गए, लेकिन रुपए का लुढ़कना जारी रहा।

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यूपीएससी परीक्षा में एक प्रश्न पूछा जा सकता है : यदि 2014 में डॉलर की कीमत 58 रुपए थी और आज 2025 में 90 रुपए है, तो देश कितने प्रतिशत गिरा? सभी स्मार्ट छात्र तुरंत गुणा-भाग कर लेंगे : 55.17 प्रतिशत। कुछ उनसे भी ज्यादा होशियार होंगे और बिना पूछे बता देंगे : मोदी राज में औसतन 5 प्रतिशत हर साल। विपक्ष चिल्लाना शुरू कर देगा : देश की ईज्जत हर साल 5 प्रतिशत गिर रही है और धन कुबेरों की दौलत 10 गुना बढ़ गई है। देश की ईज्जत गिरने की दर की तुलना वे एनपीए के बढ़ने की दर, किसानों और मजदूरों की आत्महत्या के बढ़ने की दर से भी करने लगेंगे और कहेंगे : यह विकास नहीं, विनाश है।

मोदीजी कहेंगे : शटअप, ड्रामेबाजी नहीं, डिलीवर कीजिए। वैसी ही डिलीवरी दीजिए, जैसा अडानी-अंबानी-टाटा चाहते हैं। फिर यह सवाल ही नहीं होगा कि उनकी संपत्ति कितनी बढ़ी है और किसकी गिरी है? ऐसी डिलीवरी देंगे, तो फिर आप रूपये का लुढ़कना नहीं, डॉलर का चढ़ना देखेंगे। डॉलर आज वैश्विक करेंसी है। डॉलर के चढ़ने में देश की ईज्जत का चढ़ना दिखेगा, गिरना नहीं। ड्रामा सांस्कृतिक व्यवहार है और हमारे कॉरपोरेटों को इसमें कोई रुचि नहीं है। देश का विकास संस्कृति से नहीं, दौलत से होता है और हम 4 बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को पार करने जा रहे हैं। विपक्ष संसद में फिर “हाय हाय” चिल्लाएगा, सदन का बहिष्कार करेगा और मोदीजी विधेयकों को आसानी से कानून का रूप दे देंगे।

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गणितीय मनोरंजन के लिए क्विज में एक सवाल पूछा गया : यदि मोदी राज के 11 सालों में रुपए की इज्जत 55 प्रतिशत गिरी, तो यह कब तक मटियामेट हो सकता है? मनोरंजन के नाम पर कई दिलचस्प उत्तर मिलने की गुंजाइश थी और मिले। जैसे एक समूह ने शुद्ध गुणा-भाग करके बताया : ठीक 2035 तक। दूसरे समूह ने बताया : यह हड़बड़ी वाला उत्तर है। हम सही है, सन 2047 तक। मोदीजी ने यही समय सीमा तय की है देश को विकसित राष्ट्र बनाने की। एक विकसित राष्ट्र में रूपये का क्या काम? हर नागरिक के हाथ में डॉलर होंगे और डॉलर के कब्जे में हमारा रुपया। यही अमृतकाल से आगे का विकास होगा। तीसरे समूह से आवाज आई : न रूपये की कीमत गिरेगी और न देश इज्जत मटियामेट होगी, क्योंकि 2047 तक न मोदी रहेंगे, न भाजपा रहेगी। रहेगा तो केवल रुपया और देश, जो गर्व से सीना ताने अपनी सौवीं आजादी मना रहा होगा।

150वीं सालगिरह पर संसद में ‘वंदे मातरम’ पर बहस हो रही है। रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू से लेकर वे सब कटघरे में खड़े हैं, जिन्होंने तिरंगा हाथ में लेकर ‘वंदे मातरम’ का नारा लगाया था और अनगिनत इस नारे को अपने होंठों में लिए फांसी के फंदे पर चढ़ गए। वे सब आज ‘साहूकार’ बन गए हैं, जिनकी जुबान पर ‘वंदे मातरम’ आता नहीं था और जो ‘नमस्ते सदा वत्सले’ गाते हुए, अंग्रेजों के चरण चूम रहे थे और माफीनामे भिजवा रहे थे और मुस्लिम लीग के साथ मिलकर प्रांतीय सरकारें चला रहे थे। जिन्होंने इस देश के विभाजन की नींव रखी, आज वे ही अखंड भारत के सबसे बड़े उदघोषक हैं। हिंदुस्तान को खंड-खंड करके वे आज लोगों को अखंड भारत का सपना परोस रहे हैं।

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यदि अंग्रेजपरस्त आज सबसे बड़े देशभक्त हैं, तो मानना चाहिए कि देशभक्ति आज सबसे बड़ा व्यापार-कर्म है। जिनके खून में व्यापार हो, उनके व्यापार में डॉलर ही होगा। मुनाफा भी डॉलर में ही कूटा जायेगा। रुपया जितना गिरेगा, मुनाफा उतना ही बढ़ेगा। फिर रुपए का लुढ़कना/गिरना कौन देखता है? जो देख रहे हैं, वे राम द्रोही हैं, राष्ट्र द्रोही हैं, राष्ट्र विरोधी हैं। जो अमेरिका से करें प्यार, वे डॉलर की चढ़ाई से कैसे करें इंकार! रूपये को गिराना और डॉलर को चढ़ाना आज देशभक्ति की सबसे बड़ी मिसाल है। खबरदार, जो कोई आड़े आए इस देशभक्ति के!

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