December 4, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

तो फिर यूं हुआ मैंने उसे जाने दिया-संजय अग्रवाल

जलपाईगुड़ी/पश्चिम बंगाल(राष्ट्र की परम्परा)
दिल से जुड़ी हर बात को बिखर जाने दिया,
खुद को संभाला, मगर उसे जाने दिया।
वो वादे, वो कसमें, वो बातें अधूरी,
हर याद को अब धुंध में खो जाने दिया।
तो फिर यूं हुआ मैंने उसे जाने दिया।।

चाहत के सफर में थे कांटे भी बहुत,
हर चोट को अब दर्द में बदल जाने दिया।
वो जो न समझा मेरे दिल की जुबां,
उसके हर सवाल को हवा में उड़ जाने दिया।
तो फिर यूं हुआ मैंने उसे जाने दिया।।

मोहब्बत की वो रातें, वो ख्वाब सुनहरे,
हर रंग को अब बेरंग हो जाने दिया।
सहर की तलाश में जो रातें गवाईं,
उन जख्मों को अब वक्त का मरहम पाने दिया।
तो फिर यूं हुआ मैंने उसे जाने दिया।।

आंखों के किनारे जो आंसू छुपे थे,
हर बूंद को अब समंदर में मिल जाने दिया।
आरज़ू जो कभी दिल का गहना रही,
उस ख्वाब को भी मैंने खाक हो जाने दिया।
तो फिर यूं हुआ मैंने उसे जाने दिया।।