सोमनाथ मिश्र की कलम से
(राष्ट्र की परम्परा)
महिलाओं की सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए भारत में जितने कानून और नियम मौजूद हैं, उतने शायद ही किसी अन्य लोकतांत्रिक देश में हों। कठोर दंड, त्वरित कार्रवाई की नीतियां, हेल्पलाइन नंबर, वन-स्टॉप सेंटर, महिला डेस्क, और स्पेशल पुलिस यूनिट—कागज़ी ढांचा बेहद सशक्त दिखता है। लेकिन असल जमीन पर तस्वीर बिलकुल उलट नजर आती है। उत्पीड़न, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा और दुष्कर्म की लगातार बढ़ती घटनाएं यह दर्शाती हैं कि महिलाओं की सुरक्षा कागज़ों में तो है, लेकिन वास्तविकता में अब भी गहरी चुनौती बनी हुई है।
कानून नहीं, सिस्टम की कमजोरी—महिलाओं की सुरक्षा में सबसे बड़ा अवरोध
जानकार मानते हैं कि भारत में समस्या कानूनों के अभाव की नहीं, बल्कि उन्हें लागू करने वाली व्यवस्था की जड़ता में है।
महिलाओं की सुरक्षा कमजोर तब होती है जब—
FIR दर्ज करने में अनावश्यक देरी
पुलिस जांच में लापरवाही
कोर्ट में मुकदमों का वर्षों तक लंबित रहना
फास्ट-ट्रैक कोर्ट का भी बोझ बढ़ जाना
इन कमियों के चलते पीड़िताओं का भरोसा टूटता है और अपराधियों का मनोबल बढ़ता है।
फास्ट-ट्रैक कोर्ट इसलिए बनाए गए थे कि संवेदनशील मामलों में त्वरित न्याय मिले, लेकिन कई जिलों में इन अदालतों पर भी हजारों केस लंबित हैं। ऐसे में न्याय का विलंब महिलाओं की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाता है।
जमीनी कमजोरियां—जहां सुरक्षा तंत्र थमता नज़र आता है
कानून कितने भी कड़े हों, सुरक्षा तभी मजबूत होती है जब प्रशासनिक व्यवस्था चुस्त हो। आज भी देश के कई शहरों और कस्बों में—
सीसीटीवी कवर अधूरा
महिला हेल्पडेस्क संसाधनों की कमी से जूझती
रात के समय पुलिस गश्त कमजोर
सुरक्षित पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अभाव
ये कमियां साफ दिखाती हैं कि महिलाओं की सुरक्षा केवल नियम बनाने से नहीं, बल्कि लगातार निगरानी और सक्रिय प्रशासन से बनती है।
जब गलियां अंधेरी हों, सड़कें सुनसान हों, शिकायत दर्ज करना मुश्किल हो—तो अपराध बढ़ना स्वाभाविक है।
समाज की मानसिकता—महिलाओं की सुरक्षा की सबसे जटिल चुनौती
कानून और व्यवस्था से भी ज्यादा बड़ा मुद्दा है समाज की सोच।
अक्सर—
पीड़िता पर ही सवाल उठाना
परिवारों का दबाव
सामाजिक शर्म और अविश्वास
महिलाओं को शिकायत दर्ज कराने से रोक देता है। यह मानसिकता अपराधियों को अप्रत्यक्ष सुरक्षा देती है। जब तक समाज यह नहीं मानेगा कि “अपराध अपराधी की गलती है, पीड़िता की नहीं”—तब तक महिलाओं की सुरक्षा अधूरी ही रहेगी।
सच्ची सुरक्षा: जवाबदेही, संवेदनशीलता और जागरूकता
अगर वास्तव में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है, तो सिस्टम को सक्रिय, जवाबदेह और संवेदनशील बनाना होगा। इसके लिए आवश्यक कदम—
पुलिस अधिकारियों की समयबद्ध रिपोर्टिंग
हर थाने में महिला मामलों के लिए प्रशिक्षित स्टाफ
सार्वजनिक स्थानों पर 24×7 निगरानी
स्कूल–कॉलेज से लेकर गांवों तक जागरूकता अभियान
जब व्यवस्था मजबूत होगी और समाज संवेदनशील—तभी महिलाओं को वास्तविक सुरक्षा मिल सकेगी।
महिलाओं की सुरक्षा—कानूनों से नहीं, व्यवस्था की ईमानदारी से पूरी होगी।
महिलाओं की सुरक्षा केवल कागज़ी योजनाओं से नहीं, बल्कि जमीनी बदलाव से संभव है। जरूरत है ऐसी व्यवस्था की जहां महिलाओं को बाहर निकलने से पहले डर को नहीं, बल्कि अपने अधिकारों और सुरक्षित माहौल पर विश्वास हो। सुरक्षा एक वादा नहीं—एक मौलिक अधिकार है, जिसे मजबूत सिस्टम और जागरूक समाज मिलकर ही सुनिश्चित कर सकते हैं।
