
गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में शनिवार को बी.ए.एल.एल.बी. (ऑनर्स) और एम.कॉम. की प्रवेश परीक्षाएं शांतिपूर्ण माहौल में चल रही थीं, वहीं एक ओर ऐसी घटना घट गई जिसने विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को गहरी ठेस पहुंचाई है।
शनिवार पूर्वाह्न करीब 11:00 बजे, जब प्रवेश परीक्षा देकर छात्र मुख्य द्वार से बाहर निकल रहे थे और उनके माता-पिता व अभिभावक कतारबद्ध होकर इंतजार कर रहे थे, उसी दौरान एक काली रंग की एसयूवी मुख्य द्वार की ओर बढ़ी। भीड़ को देखकर वाहन चालक कुछ क्षण ठिठका और फिर गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मी से शीशा नीचे कर कहा “मारो…… को!” यह सुनकर वहां मौजूद अभिभावक हक्का-बक्का रह गए।
जब अभिभावकों ने गार्ड से पूछा कि यह कौन है, तो जानकारी दी गई कि वह विश्वविद्यालय के ही एक प्रोफेसर हैं। गार्ड नाम बताने में असमर्थ थाl यह जान कर लोगों का आश्चर्य और भी बढ़ गया। जिस शिक्षण संस्था का उद्देश्य मर्यादा, संवाद और संस्कार देना रहा है, वहां के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग ही जब अमर्यादित भाषा और व्यवहार करें, तो यह न केवल नैतिक गिरावट का संकेत है, बल्कि संस्थान की साख को भी गहरा आघात पहुंचाता है।
वर्तमान में विश्वविद्यालय के कई पाठ्यक्रम ऐसे हैं जहां नामांकन के लिए पर्याप्त विद्यार्थी तक नहीं मिल रहे और दूसरी ओर जो विद्यार्थी हजारों किलोमीटर दूर से इस संस्थान में पढ़ने की उम्मीद लेकर आ रहे हैं, उनके अभिभावकों के साथ ऐसा असभ्य व्यवहार किया जाना चिंताजनक है।
कुलपति प्रो. पूनम टंडन द्वारा विश्वविद्यालय की रैंकिंग, शैक्षणिक गुणवत्ता और राष्ट्रीय पहचान के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, वे इस प्रकार की घटनाओं से नकारात्मक रूप में प्रभावित हो सकते हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन को इस घटना की जांच कर स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि अनुशासन और मर्यादा सभी के लिए समान रूप से अनिवार्य है, चाहे वह विद्यार्थी हो या प्राध्यापक।
इस घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि केवल भौतिक संसाधनों, इमारतों और पाठ्यक्रमों से विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा नहीं बनती, बल्कि व्यवहार, भाषा और मूल्यों से ही उसकी असली पहचान कायम होती है।
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