गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। मालवीय मिशन टीचर्स ट्रेनिंग सेंटर (एम.एम.टी.टी.सी.) और मनोविज्ञान विभाग, दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में “उच्च शिक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग: मुद्दे, चुनौतियाँ और संभावनाएँ” विषय पर एक सप्ताह का ऑनलाइन अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम मंगलवार से प्रारंभ हुआ। कार्यक्रम का उद्देश्य उच्च शिक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की उपयोगिता, सीमाएँ और नैतिक पक्ष पर शिक्षकों को प्रशिक्षित और जागरूक करना है।
उद्घाटन सत्र सुबह 10 बजे आरंभ हुआ, जिसका संचालन सहसमन्वयक डॉ. गरिमा सिंह, सहायक प्रोफेसर, मनोविज्ञान विभाग ने किया। उन्होंने स्वागत वक्तव्य में कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता अब शैक्षिक उत्कृष्टता का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है और शिक्षकों के लिए इसके प्रति सक्षम तथा संवेदनशील होना आवश्यक है। इसके बाद यू.जी.सी. एम.एम.टी.टी.सी. सेंटर के निदेशक प्रो. चंद्रशेखर ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया और शिक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता से जुड़े तेज़ी से हो रहे तकनीकी परिवर्तनों को समझने की आवश्यकता पर जोर दिया।
कार्यक्रम समन्वयक प्रो. अनुपभूति दुबे ने प्रशिक्षण कार्यक्रम की अवधारणा, उद्देश्यों और आगामी सत्रों की रूपरेखा का विस्तृत परिचय दिया। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी कृत्रिम बुद्धिमत्ता को तेज़ी से अपना रहे हैं, जबकि शिक्षकों में इसके उपयोग को लेकर कई शंकाएँ अभी भी मौजूद हैं। यह कार्यक्रम उन्हीं चिंताओं को दूर करने और शिक्षकों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के उद्देश्य से आयोजित किया गया है।
उद्घाटन व्याख्यान में दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के एमेरिटस प्रोफेसर प्रो. आनंद प्रकाश ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता की क्षमताओं, सीमाओं और मानवीय चेतना के संदर्भ में इसके प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि मानव चेतना केवल सूचना प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह अनुभव, भावनाओं और अस्तित्वगत अनुभूतियों का सम्मिलित स्वरूप है, जिसे मशीनें कभी प्रतिस्थापित नहीं कर सकतीं। उन्होंने कहा कि संवेदना और बोध जैसे गुणवत्तापूर्ण अनुभव केवल मनुष्य ही कर सकता है, मशीनें नहीं। प्रो. प्रकाश ने स्पष्ट किया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता शिक्षा में शिक्षक की भूमिका को समाप्त नहीं करती बल्कि उसे और सुदृढ़ बनाती है, लेकिन उस पर अत्यधिक निर्भरता विद्यार्थियों में समीक्षात्मक सोच को कमज़ोर कर सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि मशीनों द्वारा की गई त्रुटियाँ कई बार गंभीर और घातक सिद्ध हो सकती हैं, जबकि मनुष्य द्वारा की गई गलतियाँ सुधारी जा सकती हैं। इसलिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग में नैतिक सावधानी अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता कभी भी मानवीय संवाद, सामाजिक अंतःक्रिया और प्रत्यक्ष उपस्थिति में होने वाले मानव–मानव संप्रेषण का स्थान नहीं ले सकती।
व्याख्यान के बाद कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने प्रतिभागियों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि परिवर्तनों को स्वीकार करने में समय लगता है, किंतु आज बदलाव इतनी तेज़ी से हो रहे हैं कि उन्हें टालना संभव नहीं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी इन्हीं परिवर्तनों का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग इस प्रकार करें कि उसके दुष्प्रभाव न्यूनतम हों और लाभ अधिकतम प्राप्त हो सके। उन्होंने इसके संतुलित, जिम्मेदार और रचनात्मक उपयोग पर बल दिया।
अंत में धन्यवाद ज्ञापन मनोविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. धनंजय कुमार ने प्रस्तुत किया। उन्होंने सभी अतिथियों, वक्ताओं और प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया।
दोपहर में आयोजित तकनीकी सत्रों में “कृत्रिम बुद्धिमत्ता की समझ मूलभूत अवधारणाएँ” विषय पर मैनिट भोपाल के डॉ. अमित भगत ने व्याख्यान दिया। इसके बाद “नैतिक मुद्दे एवं चुनौतियाँ” विषय पर सी.आई.ई.टी. एन.सी.ई.आर.टी., नई दिल्ली के डॉ. राजेश डी. ने प्रस्तुति दी।
यह अल्पकालिक ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम 18 से 24 नवंबर 2025 तक चलेगा और इसके दौरान विशेषज्ञ कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विभिन्न आयामों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
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