June 2, 2025

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महाभारत काल से जुड़ा है मां लेहड़ा देवी मंदिर का इतिहास

महाभारत काल में अज्ञातवास के समय पांडवों ने इस क्षेत्र में वक्त गुजारा था

चीनी यात्री व्हेनसांग ने इस मंदिर का उल्लेख अपनी यात्रा वृतांत में किया है

डॉ सतीश पाण्डेय व नीरज कुमार मिश्र की रिपोर्ट

महराजगंज(राष्ट्र की परम्परा)। उत्तर प्रदेश महराजगंज जिले में स्थित लेहड़ा देवी मंदिर का ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। महाभारत काल में पांडवों ने इस क्षेत्र में वक्त गुजारा था। फरेंदा-बृजमनगंज मार्ग पर आद्रवन जंगल के पास यह मंदिर है। मंदिर के बगल में बहने वाले प्राचीन पवह नाला का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यहां मौजूद देवी की पिंडी पर माथा टेकने वालों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है। अगल-बगल के जनपदों के साथ ही पड़ोसी राज्य बिहार व मित्र राष्ट्र नेपाल से भी बड़ी संख्या में लोग श्रद्धा के साथ शीश झुकाते हैं।
सदियों पुराना है माता लेहड़ा देवी का इतिहास जनश्रुतियों व किवदंतियों के अनुसार मंदिर के आस -पास पहले घना जंगल हुआ करता था। जंगल में ही मनोरम सरोवर के किनारे माता की पिंडी स्थापित हुई थी। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय यहीं व्यतीत किया था। इसी सरोवर के किनारे युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का जवाब देकर अपने भाइयों की जान बचाई थी। इस मंदिर की स्थापना द्रौपदी के साथ पांडवों ने की थी। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस मंदिर का उल्लेख अपने यात्रा वृतांत में किया है।
24 घंटे जलती है माता की अखंड ज्योति
मुख्य मंदिर के बगल में ही पौहारी बाबा का प्राचीन मठ है। यहां 24 घंटे अखंड ज्योति जलती रहती है। नवरात्र व प्रत्येक मंगलवार को लोग यहां से भभूत (राख) ले जाते हैं। साथ ही मंदिर से प्रसाद के रूप में नारियल, चुनरी, लावा भी घर ले जाते हैं।
आसानी से पहुंचें माता लेहड़ा मंदिर के दरबार
आनंदनगर रेलवे स्टेशन से फरेंदा बृजमनगंज मार्ग पर स्थित इस मंदिर तक जाने के लिए रेल व सड़क मार्ग की सुविधा है। रेल से लेहड़ा रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग तीन किलोमीटर है। वहीं आनंदनगर से लगभग आठ किलोमीटर है। सड़क मार्ग से जाने के लिए आनंदनगर (फरेंदा) कस्बे के दीवानी कचहरी स्थित टैक्सी स्टैंड से जीप, आटो व बस की सुविधा उपलब्ध है।
भक्तों को आकर्षित करता है मां का स्वरूप
प्रारंभ में मंदिर केवल पिंडी स्वरूप में ही था। धीरे-धीरे मंदिर की ख्याति जब दूर-दूर तक फैलने लगी स्थानीय लोगों व मंदिर प्रबंधन के सहयोग से इस भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। इसमें निरंतर विकास की प्रक्रिया जारी है। भक्तों को मां की प्रतिमा व मंदिर का स्वरूप आकर्षित करता है।
श्रृद्धालु की पूरी होती है मनोकामना मंदिर के पुजारी का कहना है कि आद्रवन लेहड़ा देवी मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने पर मंदिर में लोग मिट्टी के हाथी, घंटा व अन्य वस्तुएं दान करते हैं। प्रसाद के रूप में लोग नारियल, चुनरी, लाई, रेवड़ी को प्रसाद के रूप में साथ ले जाते हैं।
मन्दिर परिसर में नवरात्रि पर्व पर विशेष रूप से जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था किया गया है जिसमें मन्दिर परिसर के साथ साथ ट्रैफिक व्यवस्था हेतु एस आईं, महिला एस आई,भारी संख्या में पुलिस कर्मियों की तैनाती कर पीएससी बल की भी तैनाती सुनिश्चित किया गया है ।