Monday, December 22, 2025
HomeUncategorizedवायरल कंटेंट का कहर: क्या सोशल मीडिया बन रहा है नई अदालत?

वायरल कंटेंट का कहर: क्या सोशल मीडिया बन रहा है नई अदालत?

सोमनाथ मिश्रा की कलम से

(राष्ट्र की परम्परा)

आज की डिजिटल मीडिया पर राय बनाना और फैसले सुनाना आम हो गया है। कुछ सेकंड की वीडियो क्लिप, अधूरी जानकारी या भ्रामक पोस्ट कुछ ही घंटे में हजारों-लाखों लोगों तक पहुंच जाती है और देखते ही देखते एक इंसान “दोषी” या “खलनायक” बना दिया जाता है।

यह नया डिजिटल ट्रेंड केवल अफवाहों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सीधे तौर पर किसी के सम्मान, करियर और मानसिक स्वास्थ्य पर हमला करता है। सोशल मीडिया ट्रायल में न तो आर्टिकल 21 का सम्मान होता है और न ही “दोष सिद्ध होने तक निर्दोष” की संवैधानिक भावना। अदालत से पहले ही भीड़ फैसला सुना देती है, और वही फैसला समाज में अंतिम सत्य बन जाता है।

सोशल मीडिया ट्रायल कैसे शुरू होता है?

अक्सर कोई अधूरी घटना, लीक हुआ वीडियो या एकतरफा बयान सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाता है। लोग बिना संदर्भ जाने, बिना फैक्ट-चेक किए उसे शेयर करने लगते हैं। यहीं से शुरू होता है “सोशल मीडिया ट्रायल” – जहां हर यूजर जज, वकील और जल्लाद बन जाता है।

एल्गोरिदम भी इस प्रक्रिया को तेज करता है। सनसनीखेज, विवादित और नकारात्मक कंटेंट तेजी से वायरल होता है, जिससे झूठ भी सच जैसा दिखने लगता है और सच कहीं दबकर रह जाता है।

इसके गंभीर परिणाम

सोशल मीडिया ट्रायल केवल ऑनलाइन बहस नहीं है, इसके वास्तविक और दर्दनाक परिणाम होते हैं:
नौकरी चले जाने का खतरा
मानसिक तनाव, एंग्जायटी और डिप्रेशन
सामाजिक बहिष्कार और बदनामी
परिवार और बच्चों पर असर
आत्महत्या तक के मामले
एक बार किसी की छवि इंटरनेट पर खराब हो जाए तो बाद में वह निर्दोष साबित भी हो जाए, तब भी उसकी “डिजिटल छवि” को साफ करना लगभग असंभव हो जाता है।

जिम्मेदार कौन?
इस संकट के पीछे कई पक्ष जिम्मेदार हैं:

  1. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म – जो समय रहते फेक या हेटफुल कंटेंट नहीं हटाते।
  2. कंटेंट क्रिएटर – जो व्यूज़ और फॉलोअर्स के लिए सनसनी फैलाते हैं।
  3. यूजर्स – जो बिना सोचे-समझे शेयर और कमेंट करते हैं।
    जब लाखों लोग एक साथ किसी के खिलाफ बोलते हैं, तो वही “डिजिटल भीड़” किसी का भविष्य तय कर देती है।
    समाधान क्या हो सकता है?
    सोशल मीडिया ट्रायल को रोकने के लिए समाज को जिम्मेदारी समझनी होगी:
    फैक्ट-चेक के बिना कोई भी पोस्ट शेयर न करें
    अधूरी वीडियो या खबर से निष्कर्ष न निकालें
    कानून और न्याय व्यवस्था पर भरोसा रखें
    डिजिटल लिटरेसी को स्कूलों और कॉलेजों में अनिवार्य बनाए।
    साइबर कानूनों को और सख्त बनाया जाए
    सोशल मीडिया की ताकत बहुत बड़ी है, लेकिन अगर इसका प्रयोग सोच-समझकर न किया जाए, तो यह सूचना का माध्यम नहीं, विनाश का हथियार बन जाता है।
    “वायरल होना” न्याय नहीं है। किसी के बारे में फैसला सुनाने का अधिकार सोशल मीडिया को नहीं, कोर्ट को है। इसलिए जरूरत है कि हम सोशल मीडिया ट्रायल का हिस्सा बनने के बजाय, सच और संवेदनशीलता का पक्ष लें। तभी यह प्लेटफॉर्म समाज के लिए सहायक बनेगा, घातक नहीं।
RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments