✍️ डॉ. सतीश पाण्डेय
महराजगंज (राष्ट्र की परम्परा)। देश में विकास के बड़े-बड़े दावे और बदलाव के नारे लगातार गूंजते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि भ्रष्टाचार की बीमारी हर दिन और गहरी होती जा रही है। स्थिति इतनी विकराल हो चुकी है कि लगता है अब यह रोग लाइलाज बन गया है। चाहे विकास विभाग हो, शिक्षा, स्वास्थ्य, राजस्व, पुलिस, नगर निकाय या फिर पंचायतें—हर जगह शिकायतें एक जैसी हैं,काम करवाना है तो कीमत चुकानी पड़ेगी।व्यवस्था की जड़ों में घुस चुका है भ्रष्टाचार_पहले भ्रष्टाचार एक-दो विभागों तक सीमित माना जाता था, पर अब यह सिस्टम की नसों में दौड़ता नजर आता है। फाइल आगे बढ़ाने से लेकर प्रमाण-पत्र जारी करने तक, योजनाओं की राशि से लेकर छोटे-मोटे काम तक—हर जगह कमीशन, कटौती और घूस का खेल आम हो चुका है।
लोग बताते हैं कि बिना रेट तय किए कोई भी काम सहजता से नहीं होता। गरीब, किसान, मजदूर और छोटे व्यापारियों तक इस बीमारी का सबसे ज्यादा असर दिखता है। शिकायतें बहुत, कार्रवाई बेहद कम भ्रष्टाचार के मामले उजागर तो होते हैं, लेकिन कार्रवाई अक्सर दिखावे तक सीमित रहती है। जांच बनती है, कमेटी बैठती है,रिपोर्ट बनती है,फिर मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। इस चक्र ने भ्रष्टाचारियों के मन से सजा का डर पूरी तरह खत्म कर दिया है। क्यों हो रही स्थिति और खराब?
जवाबदेही की भारी कमी,अधिकारियों पर राजनीतिक संरक्षण,ठेके और योजनाओं में पारदर्शिता का अभाव,शिकायत निस्तारण तंत्र का कमजोर होना,विभागीय मिली-भगत,जनता की विवशता और जागरूकता की कमी।इन कारणों ने भ्रष्टाचार को रोजमर्रा की संस्कृति का हिस्सा बना दिया है।
जनता का दर्द बिना पैसे कुछ नहीं होता कई जिलों में आम लोग बताते हैं कि राशन कार्ड संशोधन में पैसे,आवास योजना के लिए कमीशन,थाने में रिपोर्ट डालने तक में दबाव, अस्पतालों में सुविधाओं के लिए गैर- आधिकारिक भुगतान, विद्यालयों में नामांकन और दस्तावेजों में गड़बड़ी।जनता परेशान है,पर मजबूर भी विरोध करने पर काम और ज्यादा लटकने का डर अलग। भ्रष्टाचार सिर्फ व्यक्ति को नहीं, पूरे देश की रफ्तार को धीमा कर रहा है।
ये भी पढ़ें – जब जरूरतें बन जाएं मजबूरी: महंगाई और मध्यम वर्ग का संघर्ष
योजनाओं का पैसा बीच में ही गायब सड़कों, भवनों और परियोजनाओं की गुणवत्ता खराब,स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाएं प्रभावित,निवेश का माहौल बिगड़ता,जनता का शासन से भरोसा उठता जा रहा है। जब व्यवस्था पर भरोसा टूटने लगे, तो लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होने लगती हैं।
भ्रष्टाचार का इलाज असंभव नहीं—लेकिन उसके लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक सख्ती चाहिए। शिकायत निस्तारण की पारदर्शी और समयबद्ध व्यवस्था,डिजिटल सेवाओं का विस्तार ताकि मानव दखल कम हो,दोषियों पर तेज, कठोर और उदाहरणार्थ कार्रवाई,लोकपाल और ऑडिट संस्थाओं को स्वायत्त ताकत,हर विभाग में पारदर्शी खरीद-प्रक्रिया,जनता की भागीदारी और जागरूकता बढ़ाना।जब तक सिस्टम में भय और ईमानदारी दोनों नहीं आयेंगे, भ्रष्टाचार का इलाज मुश्किल ही रहेगा।
ये भी पढ़ें – देवरिया पुलिस का ‘मॉर्निंग वॉकर चेकिंग अभियान’: 20 स्थानों पर सघन जांच, 378 लोग और 248 वाहन जांचे गए
