Tuesday, October 28, 2025
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बिना हक लेने का मन…

बिना हक का जब लेने का मन होता है,
वहीँ महाभारत का सृजन होता है,
जब हक का छोड़ देने का मन होता है,
वहीँ राम की रामायण का सृजन होता है।

जो जैसा भाव रखता है,
वह वैसा ही हो जाता है,
उसके ही भाव उसका सृजन करते है,
वही अपना भाग्य-विधाता होता है।

अपने को परिस्थिति का दास न समझो,
परिस्थिति को अपनी तरफ़ मोड़ लो,
आप खुद अपने भाग्य के विधाता हो!
सारा उत्तरदायित्व अपने कन्धों पर लो।

याद रखें हम अपने भाग्य के निर्माता हैं,
क़र्म करने से भाग्य भी बदल जाता है,
हम जो कुछ बल या सहायता चाहें,
सब हमारे आपके भीतर विद्यमान है।

समय व जीवन सर्वश्रेष्ठ शिक्षक होते हैं,
जिन्दगी समय का सदुपयोग सिखाती है,
और समय जिन्दगी की कीमत सिखाता है।
जो सफर की शुरुआत करते हैं,
वे मक़सद व मंजिल पा लेते हैं,
बस एक बार चलने का
हौसला रखना जरुरी है,
क्योंकि अच्छे इंसानों का तो
रास्ते भी इन्तजार करते हैं।

  • डॉ. कर्नल आदि शंकर मिश्र
    ‘आदित्य’
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