जीवन में अच्छाई की शुरुआत तो
हमको स्वयं से ही करना पड़ता है,
किसी के मस्तक पर तिलक लगाने
से पहले खुद की उंगली पर लगता है।
बिना फलों वाले सूखे पेंड़ पर भूल
कर कभी कोई पत्थर नहीं मारता है,
पत्थर तो उसी पेंड़ पर मारे जाते हैं
दोस्तों जो फलों से लदा होता है।
व्यक्तित्व, चरित्र अच्छे हों तो उसकी
बुराई करने वाला अवसर पा जाता है
जो बुराइयों का ख़ज़ाना हो उसकी
तरफ़ कोई आँख भी नहीं उठाता है।
सर्वगुण सम्पन्न हो तो सुंदर रूप
ज्यादा ही सुंदर लगने लगता है,
विनम्रता मनुष्य में आने से उसकी
विद्वता का पूरा प्रमाण मिलता है।
दान पुण्य करने के काम आये धन
तो दान कर्ता का वैभव और बढ़ता है,
साहस बुद्धि सुसज्जित शस्त्राग़ार हो
तो राजपूताना समाज भी सजता है।
भूखे पेट को भोजन मिले तो उस
सम्राट का अन्न भंडार बढ़ता है,
आदित्य जोश के साथ होश हो तो
बिगड़ा काम भी चुटकी में बनता है।
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