
बलिया(राष्ट्र की परम्परा)
प्रख्यात आध्यात्मिक केन्द्र परमधाम पीठ, दुहा बिहरा में गुरुपूर्णिमा के शुभ अवसर पर भव्य धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन हुआ। प्रातःकालीन सत्र में पूज्य मौनी बाबा द्वारा विरचित सरस्वती प्चरितामृत का सस्वर पाठ किया गया। वैदिक यज्ञमंडप में आवाहित देवों, देवशक्तियों तथा अक्षर-परमाक्षर का विधिवत पूजन, हवन व आरती सम्पन्न हुई। इस अवसर पर गुरुदेव मौनी बाबा की नव निर्मित प्रतिमा का संस्कार भी श्रद्धा एवं भक्तिभाव से सम्पन्न किया गया।
प्रेम की व्याख्या में डूबा संध्याकालीन सत्र
संध्या सत्र में श्रीधाम वृंदावन से पधारे संत श्री अतुल कृष्णभामिनी शरण जी महाराज ने व्यासपीठ से उद्बोधन देते हुए कहा कि –
“देवी-देवता लौकिक सुख दे सकते हैं, पर परब्रह्म से मिलाने की शक्ति केवल आत्म-प्रेम और निष्काम भक्ति में है।”
महाराज ने कहा कि मानव शरीर सबसे कीमती गाड़ी है, जिसमें मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार जैसे गियर लगे हैं। यह गाड़ी भौतिक सुखों के लिए नहीं, आत्म-साक्षात्कार के लिए बनी है। उन्होंने श्रद्धालुओं से कहा,
“कब्र में जेब नहीं होती। अब भी समय है — संसार से भागो मत, स्वयं को पहचानो, प्रभु की शरण गहो।”
भक्ति की मिसालें – प्रहलाद, भरत और गोपियों का स्मरण
संत शरण जी ने अनेक धार्मिक प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रहलाद ने जब भगवान नृसिंह से कुछ नहीं माँगा, तो प्रभु की कृपा असीमित हो गई। उन्होंने कहा —
“माँगने पर उतना ही मिलता है, जितना माँगते हैं; पर जब नहीं माँगते तो प्रभु स्वयं अपने को दे देते हैं।”
भरत के प्रेम को उन्होंने साक्षात प्रेमविग्रह कहा। भरत और श्रीराम के बीच संवाद का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा –
“वह सेवक ही क्या जो स्वामी को संकोच में डाले।”
गोपियों के प्रेम का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि गोपिकाएं अपने सुख-दुख का विचार किए बिना, प्रियतम श्रीकृष्ण के क्षण मात्र के विरह को भी सहन नहीं कर सकती थीं। यही प्रेम का चरम रूप है।
दीपदान से आश्रम जगमगा उठा
संध्या को दीपदान यज्ञ का आयोजन हुआ, जिसमें श्रद्धालुओं ने दीप जलाकर वातावरण को भक्ति-प्रकाश से आलोकित कर दिया। संपूर्ण आश्रम भक्ति, वेद और प्रेम की त्रिवेणी में डूबा रहा।
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