
शिक्षकों की सनातन से भारतीय समाज में गौरवपूर्ण महिमा रही है जिसे अगले प्रस्तुत श्लोकों, कविताओं और दोहों से समझा जा सकता है:-
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः
गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म
तस्मै श्री गुरवे नमः॥
इस श्लोक में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, और महेश्वर के समान मानता है और उन्हें परम ब्रह्म का प्रतीक माना गया है। साथ ही यह श्लोक गुरु के प्रति आदर और श्रद्धाभाव को भी व्यक्त करता है।
- त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वं मम देव देव॥
यह श्लोक गुरु को माता, पिता, बंधु, सखा, और विद्या के समान मानने का भाव व्यक्त करता है। शिक्षक को देवता के समान पूजा जाता है जो ज्ञान और मार्गदर्शन का स्रोत होते हैं। - विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम्।
शिक्षकस्य गुणाः सप्त
सचेतस्त्वं प्रसन्नता ॥
यह श्लोक शिक्षक के गुणों को स्तुति और महत्त्व देता है। इसमें शिक्षक के सबसे महत्वपूर्ण गुण, जैसे विद्वत्ता, दक्षता, शील, स्नेहभाव और उनकी अनुशासन क्षमता की प्रशंसा की जाती है। शिक्षक के इन गुणों के साथ, छात्र की मानसिक स्थिति के प्रति शिक्षक की प्रसन्नता महत्त्वपूर्ण है, जिससे एक सफल शिक्षा प्रक्रिया संभव होती है। - दुग्धेन धेनुः कुसुमेनवल्ली
शीलेन भार्या कमलेन तोयम्।
गुरुं विना भाति न चैव शिष्यः
शमेन विद्या नगरी जनेन॥
यह श्लोक गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। इसमें शिष्य और गुरु के संबंध को दुग्ध और धेनु, कुसुम और वल्ली, शील और भार्या, कमल और तोय के समान दर्शाता है। इसका मतलब है कि शिष्य के लिए गुरु ही उसकी ज्ञान की स्रोत होते हैं, और बिना गुरु के, विद्या के नगर में जाने का योग्य रास्ता नहीं होता। इसलिए, गुरु के महत्व को उचित आदर और समर्पण के साथ प्रकट किया गया है।
कविता:
गुरुदेव यह सब सिखलाते हैं
शिष्य और शिक्षक मैं था,
सदैव उनका धर्म निभाते हैं,
माता- पिता गुरू, गुरुजन,
सब ईश्वर स्वरूप होते हैं।
गुरुदेव की सारी शिक्षा
अमृतवाणी सी होती है,
याद रखो अच्छा बुरा सब
उनकी शिक्षा न्यारी होती है।
गुरु की शिक्षा का मान करें,
उनका हम पूरा सम्मान करें,
जलते दीपक की हो ज्योति,
यह ज्ञान आपका याद रखें।
गुरुदेव की महिमा निशि दिन,
हम गायें, उनको शीश नवायें,
जीवन में ज्ञान प्रकाश भर लें,
अज्ञान अंधकार को दूर भगायें।
सत्य मार्ग पर चलना सबको,
गुरुदेव यह सब सिखलाते हैं,
ये जीवन औरों की खातिर हो,
काम दूसरों के हम सब आयें।
माता- पिता, गुरु, ईश्वर
सब पूजनीय हैं पावन हैं,
राष्ट्र की सेवा सर्वोपरि है,
आदित्य गुरु सिखलाते हैं।
रचयिता : कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
दोहा:-
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े,
काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने,
गोविन्द दियो बताय।
गुरु पारस को अन्तरो,
जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे,
ये करि लये महन्त।
गुरु समान दाता नहीं,
याचक शीष समान।
तीन लोक की सम्पदा,
सो गुरु दीन्ही दान॥
-/कबीरदास
शिक्षक दिवस पर सर्वपल्ली डाक्टर राधाकृष्णन को मेरी व देश वासियों की यही सच्ची श्रद्धांजलि है।
उन्हें शत शत नमन।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’, लखनऊ
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