Thursday, October 16, 2025
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तरंग: डीडीयू में सांस्कृतिक गतिविधि केंद्र के गठन की मंजूरी

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने अपने विद्यार्थियों के समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने ” तरंग ” नामक एक नवीन सांस्कृतिक गतिविधि केंद्र के गठन को स्वीकृति प्रदान की है। जिसका उद्देश्य छात्रों की रचनात्मक प्रतिभा को उभारना और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करना है।
तरंग केंद्र का मुख्य उद्देश्य छात्रों को संगीत, नृत्य, रंगमंच, साहित्य और कला जैसी विविध सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए एक मंच प्रदान करना है। यह केंद्र छात्रों को अपनी रचनात्मकता, विचारों और भावनाओं की अभिव्यक्ति हेतु प्रेरित करेगा।
इस केंद्र का मिशन पूर्वी उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को उजागर करते हुए एक विशिष्ट सांस्कृतिक मंच के रूप में स्थापित करना है, जो छात्रों और शिक्षकों को कलात्मक, साहित्यिक और संगीतात्मक अभिव्यक्तियों में भागीदारी के लिए प्रेरित करेगा।
तरंग केंद्र एक निदेशक और चार अतिरिक्त निदेशकों की देखरेख में संचालित होगा, जो चार विभिन्न क्लबों का नेतृत्व करेंगे। इन क्लबों में शामिल हैं। सरगम (संगीत क्लब), ताल (नृत्य क्लब), सृजन (साहित्यिक क्लब), अभिनय (रंगमंच क्लब)। इन क्लबों के माध्यम से कार्यशालाएं, प्रतियोगिताएं और प्रस्तुतियाँ आयोजित की जाएंगी, जिससे छात्र राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले सकें और एनएसडी, एफटीआईआई जैसे संस्थानों में भविष्य गढ़ने की दिशा में अग्रसर हो सकें।
कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने कहा कि तरंग, हमारे विद्यार्थियों के समग्र विकास की दिशा में एक रचनात्मक पहल है। यह मंच उनके भीतर छिपी रचनात्मक प्रतिभाओं को उजागर करने का अवसर प्रदान करेगा, जिससे न केवल उनका व्यक्तित्व निखरेगा, बल्कि विश्वविद्यालय परिसर में एक सजीव और समावेशी सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण होगा।”
तरंग केंद्र के गठन के साथ, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने एक बार फिर सांस्कृतिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देने और छात्रों को एक समग्र एवं रचनात्मक शिक्षा प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है। यह केंद्र छात्रों को अपनी रचनात्मकता को विकसित करने और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए एक मंच प्रदान करेगा, जिससे वे अपने व्यक्तित्व को निखार सकें और विश्वविद्यालय परिसर में एक सजीव और समावेशी सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण कर सकें।

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