Saturday, November 22, 2025
HomeNewsbeatपराली का धुआं बना सिरदर्द: अफसर खेतों में दौड़ रहे, किसान कागजी...

पराली का धुआं बना सिरदर्द: अफसर खेतों में दौड़ रहे, किसान कागजी कानूनों के बोझ तले कराह उठा

महराजगंज(राष्ट्र की परम्परा)। जिले में पराली जलाने पर सख्त रोक और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद प्रशासन खेत-खेत चक्कर काट रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि समस्या का बोझ आज भी किसान ही उठा रहा है। खेतों में खड़ी धान की पराली को हटाने की जद्दोजहद में किसान पहले से ही परेशान थे, उस पर भारी भरकम जुर्माने और मुकदमे की तलवार ने किसान समाज में दहशत पैदा कर दी है।हालात यह हैं कि पराली जलाने की एक सूचना मिलते ही पूरा प्रशासनिक अमला जेसीबी, दमकल और पुलिस फोर्स के साथ मौके पर पहुंच रहा है। अफसर खेतों में दौड़ते नज़र आ रहे हैं, लेकिन किसानों को अब भी पराली निस्तारण के लिए व्यावहारिक विकल्प नहीं मिल पाए हैं। अधिकांश किसानों का कहना है कि मशीनें या तो उपलब्ध नहीं हैं या किराया इतना महंगा कि छोटे किसानों की पहुंच से बाहर है।
ग्रामीण इलाकों में लोग यह सवाल भी उठाने लगे हैं कि क्या केवल पराली जलाने वाले किसान ही प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं? भारी उद्योग, शहरों का धुआं और बड़े-बड़े निर्माणों पर इतनी सख्ती क्यों नहीं दिखती? किसानों का दर्द यह है कि खेती से होने वाली आय पहले ही घटती जा रही है, ऊपर से जुर्माना, एफआईआर और नियम-कायदे उनके जख्म पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि पराली निस्तारण को लेकर सरकार को दीर्घकालिक समाधान पर काम करना होगा। मशीन उपलब्धता बढ़ाने, सब्सिडी को सरल बनाने और गांव-गांव तकनीकी सहायता देने से ही इसमें सुधार संभव है।जब तक किसान को विकल्प नहीं मिलेगा, खेतों में उठता धुआं रोकना मुश्किल ही नहीं असंभव है।
ग्रामीणों की एक ही मांग है—सजा नहीं, समाधान चाहिए। वरना यह संकट केवल प्रदूषण का नहीं, बल्कि किसान और प्रशासन के बीच बढ़ती दूरी का भी बनता जा रहा है।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments