रमा मेरा पार्सल आया हुआ था

पूर्णिया/बिहार(राष्ट्र की परम्परा)
मेरा पार्सल आया हुआ था, मैंने अपना दरवाजा खोला तो सामने से रमा और अरविंद सिढियों से साथ उतर रहे थे, दोनों ने मैचिंग आउटफिट पहन रखा था,साथ में दोनों बच्चे भी बहुत प्यारे लग रहे थे, मैंने उन लोगों को टोकना सही नहीं समझा बस रमा से नजरें मिली तो मैंने मुस्कुरा दिया और अपना पार्सल लेकर अंदर चली आई। वे सभी आज नवरात्रि के आठवें दिन मां दुर्गा की पूजा करनें जा रहे थे,रमा के हाथ में पूजा की थाली और और होठों पर मुस्कराहट थी। ठीक एक साल पहले रमा ने मुझसे वादा किया था और उसने अपना वादा कर दिखाया। मैं पार्सल लेकर सोफे पर बैठ कर खोलने लगी तो , चलचित्र की भांति एक साल पहले की घटना मेरे मानस पटल पर तैर गई।
एक साल पहले आज के ही दिन रमा भागती हुई मेरे पास आई थी
दीदी दरवाजा खोलिए, जल्दी खोलिए ,दीदी वह मेरी जान ले लेगा
आई थोड़ा रुको; तुरंत आती हूं
मैं चाय पी रही थी, चाय का कप टेबल पर रखकर मैं लपक कर दरवाजे की ओर दौड़ी,
रमा क्या हो गया ? क्यों रमा इतनी जोर से दरवाजा खटखटा रही है मेरा मन में किसी अनहोनी की आशंका से भर उठा ?
रमा जोर-जोर से दरवाजा खटखटा रही थी? मैंने भाग कर दरवाजा खोला तो रमा घर के अंदर आ गई और दरवाजा लगा दिया।
दरवाजा खोलने के क्रम में मैंने देखा,सीढ़ी पर रमा के पति राकेश को देखा जो उल्टे पांव वापस ऊपर जा रहे थे।
रमा और मैं एक ही बिल्डिंग में रहते थे ,रमा तीसरी मंजिल पर और मैं दूसरी मंजिल पर रहती थी, हम दोनों किराए पर रह रहे थे,मैं भी अपनी नौकरी के कारण घर छोड़कर अकेली रहती थी और रमा भी अपने पति और दो बच्चों से के साथ रहती थी, मैं और रमा एक ही डिपार्टमेंट में गवर्नमेंट जॉब में थे , इस कारण हम-दोनों की अच्छी बनती थी।
रमा की हालत देखकर पहले तो मैं डर गई और फिर उसे डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठाया
उसके होठों से खून निकल रहा था और दोनों गालों पर उंगलियों के निशान थे ,मैंने पूछा यह कैसे हुआ दीदी वही आज फिर से अरविंद ने मुझे मारा ।
मैं किचन से जाकर जल्दी से राम के लिए पानी लेकर आई और उसे पिलाया फिर फर्स्ट एड बॉक्स
लाकर रमा के होठों से रिश्ते खून को साफ किया दवाई लगाई ।इन सब के बीच रमा की आंखों से आंसू झर झर करके बह रहे थे।
मैंने रमा से पूछा तुम क्यों इतना बर्दाश्त करती हो
तुम आज के जमाने की इंडिपेंडेंस लेडिज हो, जॉब करती हो, पढ़ी-लिखी हो,सब कुछ समझती हो फिर क्यों इतना बर्दाश्त करती हो ?
क्या करूं दीदी मुझे कुछ समझ नहीं आता, मैं छोटे-छोटे बच्चों को कहां लेकर जाऊं, ना मायके का सहारा है ना ससुराल का ससुराल?
जब अरविंद साथ नहीं देते हैं तो बाकी और कौन साथ देगा।
तुम सारा दिन काम करती हो, घर से लेकर बाहर तक सब संभालतीं हो वह सारा दिन घर में पड़ा रहता है । तुम क्यों कोई ठोस कदम नहीं उठाती हो क्यों कुछ करनें को नहीं कहती हो ??
कब तक ऐसा चलेगा, ऊपर से मार पिटाई??
ऐसा भी नही कि, तुम्हारी गैर हाजिरी में रमेश खाना पीना या घर का काम करता हो??
तुम्हीं ड्यूटी से वापस आकर खाना पीना ,कपड़ा लत्ता और बच्चों की देखभाल करती हो,
फिर अरविंद सारा दिन फ्री रहता है ऊपर से छोटी छोटी बातों पर लड़ाई झगड़ा,मार पिटाई करता है
?
वह तुम्हारे पैसों पर जी रहा है और तुम्हें ही नहीं जीने देता ? क्यों सहती हो इतना ?जरूर तुम कुछ उसे नहीं करती हो?
नहीं दीदी ऐसा नहीं है, मैं हर संभव कोशिश करती हूं कि, अरविंद जॉब करें, वह पहले जॉब करते थे, मगर मेरे जॉब होने के बाद उसने जॉब छोड़ दिया दिया और कहां कि, मुझे आप काम की क्या जरूरत है ,तुम रूपया कमाओगी और मैं शांति से बैठ कर खाऊंगा , बच्चों की देखभाल करूंगा
दीदी वह जॉब तो नहीं रहे हैं मगर शांति से रह भी नहीं रहे ??
मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि, वह मुझे इतना तंग करेंगे, मैंने हर संभव प्रयास किया कि ,वह खुश रहे ,यहां तक कि मैंने अपनी सारी सैलरी भी उनके ऊपर छोड़ दिया कि ,वह जैसे चाहे वैसे घर का खर्च चलाएं।
मैंने सोचा कि शायद वह इससे खुश रहेंगे तो घर में शांति रहेगी मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ??
मगर मैं समझ नहीं पा रही कि, वह कैसे खुश रहेंगे?
घर न टूटे शादी बची रहे इसके लिए मैं बर्दाश्त करती जा रही हूं और उनकी उग्रता दिन-ब -दिन मेरे प्रति बढ़ते जा रही हैं ,जब भी मैं पैसों की बात करती हूं, अपने खर्चे की बात करती हूं तो वह मुझसे मारपीट करने लगते हैं ,यहां तक की मैं रोज के खर्चो को भी उनसे मांग कर लेती हूं ,ऑफिस जाने में जो मुझे ऑटो भाड़ा या टैक्सी भाड़ा लगता है, वह सारे रुपए मुझे उनसे हर रोज मांगने पड़ते है।
क्या करूं दीदी मैं तो फंस गई मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे जॉब लगने के बाद वह अपना जॉब छोड़ देंगे और मेरी हालत ऐसी अ ऐसी जाएगी ?
मैंने सोचा था कि ,दोनों लोग जॉब करेंगे तो घर खर्च अच्छे से चलेगा और चार पैसे बच पाएंगे, मगर जस्ट उल्टा हो गया।चार पैसे बचे या ना बचे मगर घर में कलह लाखों का हो गया है।
मैंने पूछा कि तुम्हारे होठों से कैसे खून निकल रहा है रमा ने कहा ,मैं जब अपनी सैलरी का हिसाब लेती हूं , खर्च के बारे में पूछती हूं तो हम दोनों के बीच बहस हो जाता है,वे कुछ नहीं बताते कि, कितने रूपए कहां खर्च किए,चार पैसे बचा भी रहे हैं या नहीं?
आखिर मेरा भी तो हक है कि, मेरी कमाई का रुपया कहां कहां खर्च हो रहा है,दो बच्चे हैं उनका भी भविष्य भी तो देखना है। मगर नहीं अरविंद मुझे कुछ नहीं बताते।
ऐसा लगता है जैसे मैं उनके लिए रूपया कमानें का जरिया मात्र हूं??
आज भी इसी बात पर वह इतने उग्र हो गए कि ,उन्होंने मेरे दोनों गाल पकड़ कर होठों पर मुक्का मारा दिया;
ईस् ईस् ईस् रमा की बात सुनकर मेरी रूह कांप उठी? मेरे पति ऐसे नहीं हैं वे बहुत अच्छे हैं मेरा बहुत ध्यान रखते हैं, मैं भी जॉब करती हूं और वह भी जॉब करते मगर हम दोनों एक दूसरे की सैलरी का कभी हिसाब नहीं देते, उनको जितना होता है वह घर के लिए खर्च करते हैं मुझे जितना होता है वह खर्च करती हूं। आखिर हम दोनों के पैसा तो परिवार पर ही खर्च होगा ना ,जाएंगे तो बच्चों के ऊपर है या खुद के ऊपर ।
मगर यह क्या? रमा को इतना कष्ट ?? रुपए कमाकर घर लाती है फिर भी खुशहाल जीवन नहीं है
यह बात कही न कही सच है कि, खुशियां पैसों से नहीं आती व्यवहार से आती।
मैंने रमा को भरसक समझानें का प्रयास किया कि, कोई ठोस कदम उठाए
मैंने रमा से कहा कि, तुमने अपने जीवन में सबसे बड़ी गलती यही कि, तुमने अपने पति को अपने सैलरी से खर्च करने का पूरा अधिकार दे दिया, उसे पारिवारिक जिम्मेदारियां से मुक्त कर दिया उन्हें एहसास ही नहीं रहा कि उन्हें रुपया कमा कर अपने बाल बच्चों की परवरिश करनी है ?
उन्हें बस यही एहसास रहा की पत्नी के पैसे से पत्नी की जिम्मेदारी जिम्मेदारियां पूरी करनी है।
नवरात्र का समय चल रहा है और प्रत्येक दिन मां दुर्गा की अलग-अलग रूप में पूजा होती है , शायद इसीलिए कि, एक औरत भी देवी का रुप होती है। आत्मरक्षा , अपने परिवार की सुरक्षा के लिए उसे भी मां दुर्गा की तरह अलग अलग रुप धारण करना चाहिए, अन्यथा उसके साथ अन्याय होता रहेगा। हर स्त्री को इस नौ रूप को धारण करना चाहिए, अपने बचाव में, अपने बच्चों के बचाव में ,पति को सही जगह सही दिशा देने में, बच्चों को सही दिशा देने में , चाहे, जितनी भी मेहनत करनी पड़े वह करे।
मैंने मां दुर्गा के सभी रुपों का उदाहरण देते हुए रमा को समझाया कि,अब तुम्हारे लिए बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है कि, सबसे पहले तुम किसी भी तरह अपने सैलरी के पैसे को अपने हक में लो और अरविंद को नौकरी करने के लिए कहो, बच्चों के भविष्य की दुहाई दो, नहीं डर दिखाओ कि, छोड़ कर चली जाओगी तो शायद बात बन जाएं। तुम औरत हो ,दुर्गा का रुप हो तुम सबकुछ कर सकती हो।
हां दीदी आज मैं प्रण लेती हूं कि, मैं किसी न किसी तरह अरविंद को उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराकर रहूंगी, उन्हें दुबारा नौकरी करने पर मजबूर कर दूंगी , अपनें सही कहा मैं सबकुछ कर सकती हूं और मैं करुंगी।
और एक साल के अंदर रमा ने कर दिखाया, आज वो खुशहाल हैं ,अरविंद अपनी जिम्मेदारियां को बखूबी निभा रहा हैं रमा को और क्या चाहिए।
दोनों को खुश देखकर आज मैं खुश हूं, स्त्री चाहे तो सबकुछ कर सकती है।
हमारे समाज की सबसे बड़ी विडम्बना यही है कि, युग चाहे कोई भी हो, चाहे कलयुग हो, त्रेता हो, द्वापर युग हो, हमेशा स्त्रियां प्रताड़ित होती हैं समय-समय पर स्त्रियों के वस्त्र बदल जाते हैं फैशन चेंज होता है ,जीने का तरीका बदल जाता है मगर स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार और शोषण का तरीका भी बदलता चला जाता है। कामकाजी औरते आज नयी तरह की समस्यायों से घिर चुकी है,घर और आफिस की जिम्मेंदारी के साथ साथ शोषण भी सह रही है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा हैं? मगर थोड़ी सावधानी और सुझबुझ दिखाई जाए तो समाज बदल सकता है औरतों के साथ शोषण कम हो सकता हैं, औरतों को को शिक्षा के साथ साथ जागरूकता भी जरूरी है।
लेखक-सुनीता कुमारी की कलम से
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