July 7, 2025

राष्ट्र की परम्परा

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माॅ गंगा के जल प्रवाह को रोकना केंद्र वह राज्य सरकार को पड़ा भारी

माॅ गंगा के जल प्रवाह को रोकना सरकार को पडा भारी

जोशीमठ का अस्तित्व अब खतरे में

देवरिया (राष्ट्र की परम्परा) कसयां रोड स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर देवरिया के संस्थापक व प्रधान पुजारी स्वामी राजनारायणचार्य ने बताया कि, आज की वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार जो हालात जोशीमठ में उत्पन्न हुए है उनके लिये कुछ खामियां सरकार द्वारा किया जा आधुनिकता के विकास का दौड़ भी शामिल है।
ध्यातव्य है कि ज्योतर्मठ जिसका अपभ्रंश नाम जोशीमठ पर्वतराज हिमालय का ही अविभाज्य अंग है जिसका धार्मिक,सांस्कृतिक,पौराणिक एवं वैदिक महत्व विश्व विश्रुत है।
श्रीवैष्णव जगत् में देवभूमि उत्तराखंड के तीन दिव्यदेशों १.देवप्रयाग २.ज्योतिर्मठ ३. श्रीबदरीनाथ धाम का मंगलाशासन ईशापूर्व छठवीं शताब्दी में दक्षिणभारत के आल्वार संतों ने किया है।

ज्ञातव्य है कि पूर्वकाल में हिमाच्छादित जोशीमठ में आदि पुरुष नारायण जिनकी श्रीनृसिंह रूप से पूजा की जाती है,वे वर्तमान समय में भी जोशीमठ में विराजमान हैं।
प्राचीनतम १०८ श्रीविष्णु मंदिर “दिव्यदेशों” में परिगणित जोशीमठ में लगभग ९३० वर्ष पूर्व भगवान् श्रीरामानुजाचार्य का आगमन जोशीमठ में हुआ था।

महान दार्शनिक श्रीशेषमूर्ति रामानुजाचार्य ने अपनी साधना के क्रम में भगवदाराधन करते हुए चमेली पुष्पों से श्रीभगवान् आदिपुरुष श्रीमन्नारायण नृसिंह की अर्चना की थी तब से उस क्षेत्र को चमेली इस समय चमोली कहा जाने लगा।
उत्तराखंड के चमोली ज़िले में ही जोशीमठ है।
श्रीनृसिंह भगवान् की आराधना करने के बाद श्रीरामानुजाचार्य जी श्रीबदरीनाथ भगवान् के दर्शनार्थ विशालापुरी नरनारायणाश्रम पधारे थे।
इसी दिव्यदेश में एक गुफ़ा के अन्दर भगवान् शंकराचार्य ने तपस्या करके परम ज्ञान को प्राप्त कर ज्योतिर्मय भगवान् बदरीनारायण का दर्शन किया था।
भगवान शंकराचार्य ने ज्योति दर्शन के उपरान्त नरनारायणाश्रम पधारकर नारदकुण्ड से श्रीबदरीनाथ भगवान् का श्रीविग्रह निकलवाकर प्राचीन श्रीमंदिर स्थापित कर आराधन पूजन की व्यवस्था किये थे।
भगवान् शंकराचार्य ने ज्योतिर्मय विष्णु का दर्शन कर श्रीविष्णुसहस्त्रनाम पर भाष्य लिखा था।
श्रीबदरीनाथधाम से जोशीमठ तीर्थ का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध होने से ये दिव्यदेश अमलात्मा,विमलात्मा,महात्मा,सिद्ध,
साधकों का साधनास्थल बना रहा है।
भगवान शंकराचार्य के समय में जोशीमठ को तपोवन कहा जाता था।
प्राचीनकाल से अर्वाचीन काल में भी ये सिद्ध भूमि है।
राजस्व के लिए आये दिन पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए हिमालय में अनवरत विस्फोट होते रहा है।
देखा जाय तो इन दिव्यस्थलों के विनाश का कारण विष्णुप्रयाग में बिजली उत्पादन केंद्र से प्रारम्भ होता है ।
अनेकों जगहों पर भागीरथी गंगा,अलकनन्दा गंगा,मंदाकिनी गंगा,गरुड़गंगा आदि के साथ अत्याचारों से ही देवभूमि विनाश के तट पर अवस्थित है जबकि पतितपावनी गंगा का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है ।
अत्याधुनिक सुविधाओं का उपयोग प्रायः सभी को अपेक्षित है,तब कैसे सरकार को इस सर्वनाश का कारण बताया जाय।
परम पवित्र तीर्थों को पर्यटक स्थल बनाना भी अपराध की श्रेणी में ही आता है।

व्यक्तिगत विचार करने पर लगता है कि इस संदर्भ में हम सभी धर्माचार्य भी कम अपराधी नहीं हैं,क्योंकि हमलोगों ने कभी भी समवेतरूप से तीर्थों को पर्यटक स्थल बनाने,गंगा में विद्युतीय प्रोजेक्ट बनाकर गंगा को बर्बाद करने का विरोध नहीं किया है ।
मुझे लगता है कि हमलोग सम्प्रदाय,पंथ,मत आदि में बँटकर पृथ्वी का बैकुण्ठ देवभूमि को बचाने के लिए कृतसंकल्पित नहीं हुए।
अब समय आ गया है,हम सभी अपनी आस्था,उपासना के अनुसार जोशीमठ को बचाने के लिये श्रीबदरीनाथ,श्रीनृसिंहदेव तथा श्रीकेदारनाथ जी से प्रार्थना,अनुष्ठान,जप,यज्ञ आदि करें।
ज्ञातव्य है कि केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार जोशीमठ को बचाने के लिए युद्धस्तर पर कार्य करती हुईं प्रभावित लोगों को पुनर्वास की व्यवस्था कर रही है।