नवनीत मिश्र
विश्व मृदा दिवस हर वर्ष 5 दिसंबर को हमें यह स्मरण कराता है कि धरती की यह साधारण दिखाई देने वाली परत ही जीवन का वास्तविक आधार है। मानव सभ्यता का उत्थान इसी मिट्टी पर हुआ है और आज भी कृषि, खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक स्थिरता सब इसी पर निर्भर हैं। परंतु आधुनिक कृषि पद्धतियों में रसायनों और उर्वरकों के अनियंत्रित उपयोग ने मिट्टी की सेहत को गहरी चोट पहुंचाई है।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में मिट्टी की उर्वरता का गिरना केवल कृषि का संकट नहीं, बल्कि लाखों किसानों की आजीविका और सम्पूर्ण पर्यावरण का प्रश्न बन चुका है। रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और तेज रासायनिक दवाओं के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी के जैविक गुण नष्ट हो रहे हैं। सूक्ष्मजीवों की संख्या घट रही है, पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ रहा है और उपजाऊ भूमि धीरे-धीरे बंजर होती जा रही है। यह स्थिति जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण दोनों को बढ़ावा देती है।
ऐसे समय में जैविक कृषि ही वह विकल्प है जो मिट्टी की मूल संरचना को सुरक्षित रख सकता है। देसी गायों के गोबर और गोमूत्र से बने जैविक खाद न केवल पूरी तरह प्राकृतिक हैं, बल्कि मिट्टी में कार्बन की मात्रा बढ़ाकर उसकी उत्पादकता को लंबे समय तक बनाए रखते हैं। जैविक पद्धति से खेती करने पर फसल की गुणवत्ता बढ़ती है, लागत घटती है और भूमि की दीर्घकालिक सेहत सुधरती है। यह पर्यावरण-अनुकूल प्रणाली किसान और प्रकृति दोनों के लिए लाभकारी है।
विश्व मृदा दिवस हमें जागरूक होने का अवसर देता है कि यदि हम आज मिट्टी को बचाने के लिए कदम नहीं उठाते, तो भविष्य की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। किसान हों या आम नागरिक हर किसी की जिम्मेदारी है कि मिट्टी को बचाने की मुहिम में योगदान दें। जैविक खादों का उपयोग, फसल विविधिकरण, जल संरक्षण तकनीकें, रासायनिक दवाओं में कमी और सतत कृषि के प्रति प्रतिबद्धता जैसे छोटे कदम बड़ी क्रांति का आधार बन सकते हैं।
आइए, हम सभी इस दिन संकल्प लें कि मिट्टी की उर्वरता को पुनर्जीवित करने, पर्यावरण संतुलन सुनिश्चित करने और आने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए सतत व जैविक खेती को प्राथमिकता देंगे। मिट्टी को बचाना केवल भूमि को बचाना नहीं, बल्कि जीवन को सुरक्षित करना है।
