कथा श्रवण करने के लिए गांव समेत दूर दराज से उमड़ रही है श्रद्धालुओं की भीड़
देवरिया(राष्ट्र की परम्परा)
श्रीमद्भागवत में यह कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण का नाम और कथा सुनने से मनुष्य को जीवन में सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह कथा एक ऐसा साधन है जो जीवन की उलझनों से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है और भक्तों को ईश्वर के करीब लाती है। मोह और अज्ञान से हटकर व्यक्ति जब अध्यात्म के रास्ते पर चलने लगता है, तो उसे मान-अपमान, सुख-दुख का अनुभव नहीं होता। शरीर को जो अपना मानता है वही मान-अपमान की परवाह करता है। सांसारिक वस्तु की जब तक कामना है तब तक सुख नहीं मिल सकता। परमात्मा को पाने से सब कुछ अपने आप मिल जाता है। इस कथा का आयोजन करने से समाज में एकता, प्रेम और भाईचारे की भावना का विकास होता है, जो आधुनिक जीवन की दौड़-भाग में अक्सर खो जाती है।
यह प्रसंग घटैला चेती गांव में आयोजित सात दिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञानयज्ञ में कथा वाचक आचार्य सूर्य नारायण शुक्ल ने सोमवार को तीसरे दिन कहीं। अध्याय के पांचवें श्लोक के बारे में उन्होंने बताया कि सुख-दुख अंतर्मन का विषय है, जब हमारा मन अच्छा रहता है तभी बाहर की वस्तुएं अच्छी लगती हैं अन्यथा आनंद नहीं आता। धन-सम्पत्ति कोई भी किसी भी माध्यम से एकत्र कर सकता है, लेकिन सद्गुण सत्संग और कथा से ही आते हैं। ध्रुव चरित्र का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि परिवार और समाज में सुख-शांति सद्विचार और नैतिकता के आचरण से होती है। अनुसुईया के चरित्र का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि यह चरित्र नारी को प्रेरणा प्रदान करता है। स्वयं परमात्मा को पुत्र बनकर आना पड़ा। राजा उत्तानपाद की कथा बताते हुए उन्होंने कहा कि परिवार में कलह की वजह से उत्तानपाद को ध्रुव जैसे भक्त का त्याग करना पड़ा। सूर्य की ओर पीठ करके चलने से छाया आगे आगे भागती है, लेकिन सूर्य की ओर मुंह करते ही छाया पीछे हो जाती है। श्रीमद्भागवत में यह कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण का नाम और कथा सुनने से मनुष्य को जीवन में सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्रीमद्भागवत कथा को हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह न केवल भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और उनकी लीलाओं का वर्णन करती है, बल्कि भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान और शांति भी प्रदान करती है। 28 प्रकार के नरक हैं। इनसे बचने के केवल दो उपाय हैं। भगवान की कथा का श्रवण और गंगा का स्नान व गंगा का महत्व भी उन्होंने बताया। इस अवसर पर मुख्य यजमान सूर्य नारायण द्विवेदी, मालती द्विवेदी, संतोष द्विवेदी ने श्रीमद्भागवत महापुराण की आरती उतारी। कथा में मुख्य यजमान सूर्य नारायण द्विवेदी, मालती द्विवेदी, संतोष द्विवेदी, यज्ञाचार्य आचार्य मृत्युंजय कृष्ण शास्त्री, पं. रवि पाठक, संतोष द्विवेदी, रत्नेश द्विवेदी, संतोष उपाध्याय, संकल्प उपाध्याय, रामकुमार दूबे, विजय प्रताप तिवारी, शशिप्रभा द्विवेदी, दिव्या द्विवेदी, वंदना दूबे, अर्चना तिवारी, अनुपमा उपाध्याय, आर्या द्विवेदी, सांभवी उपाध्याय, संगीता, आशुतोष द्विवेदी, हर्ष द्विवेदी, अनुराग तिवारी, प्रतीक दूबे, अभय तिवारी, प्रांजल दूबे, शुभम तिवारी, आशुतोष, रुदल गोंड समेत अन्य लोग मौजूद रहे।
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