बरहज/देवरिया(राष्ट्र की परम्परा)
जिन महाविद्यालय में प्रवेश के लिए होती थी मारामारी वहाँ भी नहीं मिल रहे है छात्र, शिक्षकों की कमी से पठन पाठन बुरी तरह प्रभावित। बरहज देवरिया प्रदेश में नई शिक्षा नीति और सेमेस्टर प्रणाली लागू होने के बाद लगातार किए जा रहे प्रयोगों के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने वाले छात्रों का टोटा हो गया है ।लगभग ढाई माह पूर्व इंटरमीडिएट का परीक्षाफल घोषित हुआ था, लेकिन तहसील क्षेत्र के किसी भी महाविद्यालय में निर्धारित सीटों के सापेक्ष 50 प्रतिशत भी छात्रों ने अब तक प्रवेश नहीं लिया है ।कुछ महाविद्यालयों में तो अभी तक 50 का आंकड़ा भी नहीं छूआ है ।जबकि तहसील क्षेत्र के प्रतिष्ठित महाविद्यालय में शुमार महाविद्यालयों में विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश की अत्यंत दयनीय स्थिति को देखते हुए महाविद्यालय प्रबंधन के हाथ पाँव फूल गया है । पीजी पाठ्यक्रमों में तो 25-तीस प्रतिशत सीट भी नहीं भरी है ।इसके पीछे क्या कारण है ?यह तो विश्लेषण की बात है ।लेकिन विद्यार्थियों से बात करने पर यह लगा की अब उनका परंपरागत पाठ्यक्रमों से मोह भंग हो रहा है और रोज़गार परक पाठक्रमो के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है।साथ ही साथ महाविद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी से पठान पाठन भी बुरी तरह प्रभावित नज़र आ रहा है । ऊपर से नई शिक्षा नीति के तहत हर बार होने वाले नए प्रयोग ने विद्यार्थियों के मुसीबत बढ़ा दी है ।पिछले तीन वर्षों में अधिकांश महाविद्यालयों में हुई बेतहाशा शुल्क वृद्धि से भी प्रवेश कार्य प्रभावित हुआ है। विद्यार्थियों को समझ में नहीं आ रहा है के दूसरे सेमेस्टर में केवल परीक्षा और पंजीकरण शुल्क ही जब महाविद्यालय को विश्वविद्यालय को भेजना है इसके बाद भी तीन वर्ष से स्नातक कक्षाओं में दोगुनी शुल्क ली जा रही है,जबकि विश्वविद्यालय के लिए शासन द्वारा आठ सौ पचास रुपये परीक्षा शुल्क और दो से ढाई सौ रुपये पंजीकरण और अन्य शुल्क दूसरे चौथे और छठवें सेमेस्टर में विश्विद्यालय को भेजना है । ऐसी स्थिति में शुल्क दोगुना करने का मतलब क्या है ? आज तहसील क्षेत्र के अधिकांश महाविद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी ने विद्यार्थियों का प्रवेश से मोह भंग किया है । शिक्षकों की कमी केवल स्वावित्तपोषित महाविद्यालयों में हो ऐसी बात नहीं है । तहसील क्षेत्र के एक मात्र वित्तपोषित महाविद्यालय में भी वाणिज्य, संस्कृत प्राचीन इतिहास , भूगोल , शिक्षा शास्त्र , हिन्दी ,दर्शनशास्त्र आदि विषयों में शिक्षकों के अनेकों पद रिक्त है । स्वावित्तपोषित पी जी पाठ्यक्रमों में केवल भूगोल और एम कॉम को छोड़कर सभी विषयों में शिक्षकों की कमी है । इस कारण भी प्रवेशार्थी प्रवेश लेने से कतरा रहे है । एक समय था जब स्नातक और परास्नातक सभी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ती थी, आज प्रवेश शुरू होने के डेढ़ महीने बाद भी काफ़ी सीट ख़ाली पड़ी है। तहसील क्षेत्र के अधिकांश स्वावित्तपोषित महाविद्यालयों की स्थिति तो और चिंताजनक है । अधिकांश महाविद्यालयों में अंगुली पर गिनने के अनुमोदित शिक्षक है । यदि किसी सक्षम जाँच एजेंसी से जाँच कराई जाये तो चुकाने वाला तथ्य सामने आएगा और तहसील क्षेत्र के अधिकांश उच्च शिक्षा संस्थानों के बड़े बड़े दावो की कलई खुल जाएगी । इस बार अधिकांश महाविद्यालयों में चालीस प्रतिशत परीक्षार्थियों के परीक्षाफल में बड़े पैमाने पर त्रुटिया भी देखने को मिल रही है । आज तक कभी भी इतने बड़े पैमाने पर रिजल्ट में आईएनसी नहीं देखा गया था । सारे पेपर की परीक्षा देने के बाद भी एक या दो पेपर का अंक अपलोड न होने के करण बड़ी संख्या मे छात्रो का रिजल्ट अपूर्ण घोषित हुआ है। अब उनका रिजल्ट कैसे और कब ठीक होगा इसे लेकर वे अलग से परेशान है ।
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