
जो तोको काँटा बुवै, ताहि बुवै तू फूल।
तोको फूल के फूल हैं वाको हैं तिरशूल॥
मैने एक नया नया मकान बनवाया,
गृह प्रवेश में पास पड़ोस को बुलाया,
मेरे नये लॉन में फलों का बगीचा भी है,
जिसमें ख़ूब सारे फल भी होने लगे हैं।
पड़ोस के मकान में कुछ लोग रहते हैं,
कुछ दिन बाद मैने देखा कि पड़ोसी
के मकान से किसी ने ढेर भर कूड़ा
मेरे घर के दरवाजे पर डाल दिया है।
उसी शाम को मैने एक टोकरी ली,
और उसमें ख़ूब सारे ताजे फल रखे,
और पड़ोसी के दरवाजे पर टोकरी
भरकर रसीले फल खुद रख दिए।
अगली सुबह उस घर की घंटी बजाई,
उस घर के लोग इस से बेचैन हो गये,
और वो सोचने लगे मैं लड़ने आया हूँ,
वे पहले ही इसके लिए तैयार हो गये।
बुरा भला बोलते हुये वे बाहर निकले,
मगर जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला,
वे हैरान हो गये रसीले ताजे फलों की
भरी टोकरी लिये मैं वहाँ खड़ा मिला।
सब हैरान थे, मुस्कान चेहरे पर लिये
नया पड़ोसी उनके सामने खड़ा था,
मैने उनसे कहा “मैं वही आपके लिये
ला सका जो थोड़ा सा मेरे पास था”।
सोचने की बात है कि जिसके पास
जो है वही वह दूसरे को दे सकता है,
अच्छा या बुरा, जो कि हमारे पास है
वही दूसरों को दिया जा सकता है।
आदित्य दाग मेरे दामन के धुले ना धुले,
नेकी मेरी कहीं तुला पर तुले ना तुले,
मांग लूँ अपनी गलती की माफी खुद,
क्या पता आँख ये कल खुले ना खुले।
प्यार बांटो प्यार मिलेगा,
खुशी बांटो खुशी मिलेगी ।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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