July 5, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

सत्सनातन भारत देश

ख़ामोश रहने वाले लिहाज़ करते हैं,
पर लोग इसे कमजोरी समझते हैं,
हर बात का मुँह तोड़ जवाब दे देना,
कुछ लोग तो अपना हक़ समझते हैं।

बच्चों की भांति पापकर्मों को कुछ
लोग शहद की तरह ही समझते हैं,
परंतु जब यही पाप पक जाते हैं,
तो इसके परिणाम दुःखद होते हैं।

दूसरों से उम्मीद करना अपने को,
आघात पहुँचाने जैसा ही होता है,
स्वयं से उम्मीद करना स्वयं को हर
तरह आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

कई ग़लत सोच रखने वालों का
साथ अधिक दुष्प्रभाव नहीं देता है,
परन्तु एक सही सोच वाले को दूर
रखना जीवन भर दुःखद होता है।

यह सर्वथा सत्य है कि रामायण
जैसा ग्रंथ, भगवद्गीता जैसे उपदेश,
सतसनातन सा धर्म, भारत सा देश,
आदित्य दुनिया में नहीं मिलता है।

•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ