Wednesday, October 29, 2025
Homeउत्तर प्रदेशअहंकार का त्याग समरसता का आधार:- प्रो. राजवंत राव

अहंकार का त्याग समरसता का आधार:- प्रो. राजवंत राव

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में आयोजित नाथ पंथ विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में दूसरे दिन के तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए अधिष्ठाता कला संकाय प्रोफेसर राजवंत राव ने कहा कि शास्त्र को पढ़कर, सिद्धांत नहीं जाना जाता। उसके लिए स्वयं में, आत्मा में उतरना पड़ता है। सिद्ध होना पड़ता है। आत्मा में उतरने के लिए अहंकार का त्याग करना पड़ता है।इसी से सहजता आती है। आत्मा में ही परमात्मा का निवास है। बूंद की नियति हैं सिंधु में पर्यवसित हो जाना- बूंद भी सिंधु समान, को अचरज कांसो कहे। यहां कुछ भी क्षुद्र नहीं। वह क्षुद्र जो सीमित था वह असीम हो जाता है। बूंद सागर में समाहित होकर एक तरह से मर जाती है। पर एक अर्थ में पहली बार महाजीवन उपलब्ध होता है। यहां मृत्यु भी एक तरह का उत्सव है -मरौ वै जोगी मरौ मरन है मीठा अहंकार जायेगा तभी आत्मा का अनुभव होगा। आत्मा की निष्कलुषता से ही सारे भेद मिटेंगे और समरस समाज की स्थापना होगी। इसीलिए नाथपंथ के अनुसार आत्मा की चेतनता की रक्षा किसी भी मूल्य पर करनी चाहिए- नाथ कहे तुम आपा राखों हठ करि बाद न करणा। तब समष्टि की आत्मा चैतन्य हो जायेगी, सहजता जीवन में व्याप्त हो जायेगी तो समरस समाज बनेगा। नाथपंथ अपने भीतर पूर्ववर्ती एवं परवर्ती परम्पराओं को समेटे हुए है। इसीलिए काल के अन्तराल को लांघते हुए आज भी मनुष्य की विषम समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर रहा है और आजतक प्रासंगिक बना हुआ है।
तकनीकी सत्र के मुख्य वक्ता आचार्य रहस बिहारी द्विवेदी ने कहा कि शास्त्र की गुत्थियों को सुलझाना जरूरी है। कोई समाज तभी उन्नति करता है। जब वह अपनी दैनिक दिनचर्या में शुचिता का पालन करता हो। शुद्ध मन से ही शुद्ध विचार आते हैं। शुद्ध विचार स्वस्थ शरीर में ही विराजमान होता है। स्वस्थ शरीर ही समरसता के तत्व को समझ सकता है।
द्वितीय मुख्य वक्ता प्रोफ़ेसर दीपक प्रकाश त्यागी ने कहा कि भक्ति आंदोलन के मूल में गोरखनाथ की उपस्थिति महत्वपूर्ण है। भक्ति आंदोलन को देखने व समझने की दृष्टि बदल रही है। नाथ पंथ भारतीय ज्ञान परंपरा का महत्वपूर्ण अंग है।
राजस्थान से आए रूप सिंह ने गीता के माध्यम से नाथ पंथ को जोड़ते हुए समरस समाज की बात की। जोधपुर के विद्वान गिरधर नाथ ने नाथ पंथ को आत्मा के कल्याण का विचार बताया। राजस्थान में नाथ संप्रदाय की परंपरा एवं प्रभाव का उल्लेख किया। डॉ. कृष्ण कुमार पांडे जी ने नाथ पंथ अविरल अविचल परंपरा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्राचीन समय से लेकर सन्यासी क्रांति एवं पूरे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान नाथ पंथ की बड़ी बुनियादी और रचनात्मक भूमिका रही है। पूज्य महंत दिग्विजय नाथ जी की भूमिका राष्ट्र को जोड़ने की दिशा में अप्रतिम है। गोरखनाथ पीठ के सभी संतों, महंतों का राष्ट्रीय सरोकार जग जाहिर है। ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ जी भारतीय समाज को जोड़ने में बहुत बड़ा योगदान दिया। इस तेजस्वी परंपरा को पूज्य योगी आदित्यनाथ जी महाराज आगे बढ़ा रहे हैं। विशिष्ट वक्ता के तौर पर पड़ोसी देश नेपाल से आए भोलेनाथ योगी ने कहा नाथ पंथ की संस्कृति में जो आदेश- आदेश के उच्चारण की प्रवृत्ति है वह विशेष प्रकार की ऊर्जा का संचार करती है। उन्होंने कहा कि आत्मा परमात्मा ईश्वर एक है.
डॉ. सुनील कुमार शुक्ल ने शास्त्र व शस्त्र की परंपरा को समरस समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण बताया।
डॉ.गौरव सिंह ने शैवधर्म में नाथपंथ के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नाथपंथ में गुरु शिष्य परंपरा का विशेष महत्त्व है। इसके अनुयाई ईश्वरवादी तथा चरित्रवान होते है। शैवधर्म का नाथपंथ का बहुत प्रभाव पड़ा है।
संचालन डॉ. अर्जुन सोनकर तथा आभार ज्ञापन डॉ.मीतू सिंह ने किया।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments