कवियों और लेखकों के साहित्यिक कार्याें को आगे बढ़ाने हेतु अरशद जमाल की अपील
मऊ (राष्ट्रीय परम्परा)
डॉ. मुहम्मद जाबिर जमान द्वारा लिखित ‘‘सरदार शफीकः फिक्री स्याक व फन्नी जेहतें’’ (अर्थात्-सरदार शफीक बौद्धिक संदर्भ और तकनीकी आयाम) नामक पुस्तक का विमोचन, नगरपालिका परिषद मऊ के सभा कक्ष में सम्मान समारोह कर आयोजित किया गया। इस समारोह में वक्ताओं ने उक्त पुस्तक के आधार स्रोत एवं केन्द्र प्रचण्ड कवि एवं मदरसा दारूलहदीस के पूर्व अध्यापक स्व0 सरदार शफीक के जीवन की उपलब्धियों एवं उन पर आधारित इस विमोचित पुस्तक के बारे में विस्तार से चर्चा की।
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. मुहम्मद आमिर के परिचयात्मक भाषण से हुई। सलमान अबरार ने डॉ. मुहम्मद जाबिर जमान की पुस्तक की परिचयात्मक रूपरेखा को परस्तुत किया। उन्होंने पारिवारिक पृष्ठभूमि से लेकर प्राथमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा तक लेखन और संकलन से जुड़े सभी मुद्दों को इसमें शामिल किया। बज्.म-ए-उर्दू के अध्यक्ष असलम एडवोकेट अपनी बीमारी के कारण कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके थे पर उन्होंने अपना लेखन भेज कर अपने मन्तब्य का इजहार किया, जिसे मंजूर-उल-हक नाजिर ने पढ़ कर सुनाया। असलम एडवोकेट ने सरदार शफीक के साथ अपने दीर्घकालिक सम्बन्धों और साहित्यिक और कविता स्रोतों में उनके दृष्टिकोण पर चर्चा की। सरदार शफीक के विचार और कला की विशिष्टता पर घोसी स्थित सर्रोदय पीजी कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. जुबैर आलम ने भी अपने ख्यालात जाहिर किये। बज्म-ए-तामीर-ए-उर्दू के महासचिव सईदुल्ला शाद ने ‘ अध्यापकः सरदार शफीक‘ शीर्षक से अपनी कविता पढ़ी। सम्मानित अतिथि डॉ. मोइनुद्दीन खान (सहायक प्रो. जाकिर हुसैन कॉलेज, दिल्ली) ने पुस्तक की सामग्री की गहन समीक्षा की। उन्होंने पुस्तकों की व्यवस्था के सिद्धांत, लेखों एवं आलेखों को सम्मिलित करने के आधार एवं अन्य आवश्यक बातें बतायीं। उन्होंने कहा कि मऊ जैसे साहित्यिक शहर प्रमुख साहित्यिक परिदृश्य से केवल इसलिए गायब हो जाते हैं, क्योंकि वे केन्द्र से जुड़े नहीं होते। उन्होंने युवा शोधार्थियों से आह्वान किया कि वे अपने नगर के साहित्यिक पहचान की बहाली के लिए प्रयास करें, क्योंकि यदि वे यह जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे तो कोई और इसके लिए आगे नहीं आएगा।इस अवसर पर पालिकाध्यक्ष अरशद जमाल ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने सम्बोधन में डॉ. जाबिर जमान को इस पुस्तक के प्रकाशन पर बधाई दी और इसे इस शहर में अपनी तरह की पहली पुस्तक बताया। उन्होंने अपने ऐसे ही एक पिछले संबोधन का जिक्र करते हुए कहा कि अभी कुछ दिन पहले मेरी शिकायत थी कि हमारे शहर में कवि तो बहुत हैं, लेकिन गद्य में कोई काम नहीं हो रहा है परन्तु रविवार के इस समारोह के आयोजन के शुभारम्भ के साथ मेरी यह शिकायत भी दूर हो गई है। उन्होंने शहर के कवियों और लेखकों से साहित्यिक कार्याें को पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ाने की अपील की। कहा कि आपको हर सम्भव मेरी मदद प्राप्त रहेगी। इस संदर्भ में उन्होंने शहर के दो शायरों मुश्ताक शबनम और माहिर अब्दुल हई के काव्य संग्रहों की छपाई पर होने वाले खर्च को स्वयं वहन करने का आश्वासन भी दिया।
समारोह के अध्यक्ष व बज़्म-ए-उर्दू के महासचिव डॉ. इम्तियाज नदीम ने सरदार शफीक और फिज़ा इब्न-ए-फैज़ी की बौद्धिक और तकनीकी समानताओं का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि सरदार शफीक अपने छात्रों के प्रति बहुत विनम्र एवं दयालु थे, तथा वह उनके भविष्य निर्माण के प्रति अत्यन्त सतर्क रवैया रखते थे।
अन्त में डॉ. मुहम्मद आमिर ने उपस्थित मेहमानों का आभार व्यक्त करते हुये कार्यक्रम के समापन की घोषणा की। यह समारोह साजिद गुफ्रान के संयोजन में रस्म-ए-इजरा बज़्म-ए-तामीर-ए-उर्दू द्वारा आयोजित किया गया था तथा इसका संचालन दानिश असरी ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी मौजूद थे।
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