नई दिल्ली (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। लोकसभा में बुधवार को चुनाव सुधार, वोट चोरी और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहस देखने को मिली। गृह मंत्री अमित शाह जब विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों पर जवाब दे रहे थे, तभी राहुल गांधी ने उन्हें बीच में रोककर “SIR” विषय पर खुली चर्चा की चुनौती दी।
राहुल गांधी ने कहा कि चुनाव आयोग को फुल इम्युनिटी देने के विचार पर पहले स्पष्ट जवाब दिया जाए। उन्होंने यह भी दावा किया कि हरियाणा सहित कई राज्यों में चुनाव प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
अमित शाह ने राहुल गांधी के हस्तक्षेप पर कड़ा रुख दिखाते हुए कहा कि वह 30 साल से जनप्रतिनिधि हैं और अपने भाषण का क्रम खुद तय करेंगे। राहुल गांधी ने इसे “डरा हुआ और घबराया हुआ” जवाब बताया, जिस पर अमित शाह ने कहा कि वे उकसावे में नहीं आएंगे और अपने क्रम में ही बोलेंगे।
अमित शाह का पलटवार: तीन “वोट चोरी” के उदाहरण दिए
गृह मंत्री ने विपक्ष के आरोपों के जवाब में इतिहास के तीन प्रमुख राजनीतिक प्रसंगों का जिक्र करते हुए “वोट चोरी” के उदाहरण पेश किए—
- नेहरू बनाम पटेल पीएम चयन विवाद – शाह के अनुसार पटेल को अधिक वोट मिलने के बावजूद नेहरू प्रधानमंत्री बने।
- इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द होना – इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा रायबरेली चुनाव अमान्य घोषित किया जाना।
- सोनिया गांधी के मतदाता बनने का मामला – दिल्ली की सिविल कोर्ट में लंबित एक केस का हवाला देते हुए शाह ने कहा कि अदालत निर्णय देगी, वे सिर्फ तथ्य बता रहे हैं।
“हमने कभी चुनाव आयोग पर सवाल नहीं उठाए” – अमित शाह
अमित शाह ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि चुनाव हारने पर चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करना नई परंपरा बन गई है। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी, स्टालिन, राहुल गांधी, खड़गे, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन और भगवंत मान जैसे विपक्षी नेता लगातार आयोग पर आरोप मढ़ते हैं।
शाह ने कहा, “आप चुनाव आयोग की छवि को दुनिया भर में बदनाम कर रहे हैं। जीतें तो प्रक्रिया ठीक, हारें तो ईवीएम, वोट चोरी और आयोग को दोष देने लगते हैं।”
“आपकी हार का कारण नीति है, ईवीएम नहीं”
गृह मंत्री ने कहा कि 2014 से अब तक एनडीए ने तीन लोकसभा और 41 विधानसभा चुनाव जीते हैं। यदि मतदाता सूची भ्रष्ट होती, तो विपक्ष भी अपने जीते हुए चुनावों की वैधता कैसे मानता?
उन्होंने विपक्ष पर न्यायपालिका को भी निशाना बनाने का आरोप लगाया और कहा कि जजों के फैसले पसंद न आने पर उनके खिलाफ महाभियोग लाना लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ है।
