नोबेल शांति पुरस्कार 2025: लोकतंत्र की जीत, व्यक्तित्व की हार

वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना माचाडो को मिला नोबेल शांति पु

  • नवनीत मिश्र

नोबेल शांति पुरस्कार 2025 की घोषणा ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि यह सम्मान केवल शक्ति या लोकप्रियता का नहीं, बल्कि साहस, नैतिकता और मानवीय मूल्यों का पुरस्कार है। इस वर्ष यह सम्मान वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना माचाडो को मिला है। एक ऐसी महिला जिसने सत्तावादी शासन और राजनीतिक दमन के बीच लोकतंत्र की लौ जलाए रखी।
दूसरी ओर, विश्व की निगाहें इस बार भी अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर टिकी थीं। अपने पहले कार्यकाल (2017–2021) में उन्होंने मध्य पूर्व में अब्राहम समझौते जैसे प्रयास किए थे, जिन्हें उनके समर्थक शांति की दिशा में ऐतिहासिक मानते हैं। 2024 में फिर से सत्ता में लौटने के बाद उन्होंने “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश की। परंतु नोबेल समिति ने स्पष्ट किया कि शांति केवल कूटनीतिक सौदों से नहीं, बल्कि नैतिक स्थिरता और सर्वहितकारी दृष्टिकोण से मापी जाती है।
मारिया माचाडो का संघर्ष व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक चेतना का प्रतीक है। वेनेजुएला में राजनीतिक दमन, चुनावी निषेध और सामाजिक असमानता के खिलाफ उनका आंदोलन उस नैतिक बल का प्रतिनिधित्व करता है जो सत्ता की सीमाओं से परे है।
इसके विपरीत, ट्रंप की राजनीति अब भी तीखे ध्रुवीकरण, आप्रवासन नीति और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के प्रति अविश्वास से घिरी हुई है। उन्होंने आर्थिक राष्ट्रवाद के नाम पर कई मोर्चों पर टकराव पैदा किए—जो वैश्विक शांति के बजाय प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देते हैं।
नोबेल समिति ने एक बार फिर यह रेखांकित किया है कि शांति संघर्ष से भागने में नहीं, बल्कि अन्याय के विरुद्ध टिके रहने में है। 1991 में आंग सान सू की, 2014 में मलाला यूसुफज़ई और अब 2025 में मारिया माचाडो—ये तीनों उदाहरण इस विचारधारा की श्रृंखला हैं।
वेनेजुएला का लोकतांत्रिक संघर्ष उन सभी समाजों के लिए प्रेरक है जो अधिनायकवाद या जनमत के दमन से जूझ रहे हैं। माचाडो को दिया गया सम्मान यह याद दिलाता है कि सच्ची शांति हथियारों या भाषणों से नहीं, बल्कि स्वतंत्रता और गरिमा के संरक्षण से संभव है।
2025 का नोबेल शांति पुरस्कार सत्ता और लोकप्रियता की जगह सत्य और साहस को प्राथमिकता देता है। ट्रंप का छूट जाना और माचाडो का चयन यही बताता है कि इतिहास अंततः उन लोगों के पक्ष में खड़ा होता है, जो सत्ता से नहीं, बल्कि सत्य से लड़ते हैं।

rkpnews@somnath

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