
कहा जाता है घमंडी का सिर नीचा
इसका अर्थ हैं घमंडी कभी न कभी
मुँह के बल गिरता ही है क्योंकि
घमंड की उम्र बहुत कम होती है।
इंसान यदि अपने पर घमंड करता हैं,
वही उसकी बड़ी असफलता होती हैं,
घमंड एक दिन शर्मिंदा करवाता है।
विद्वान कहते हैं घमंडी का सिर नीचा।
नारियल का पेड़ ऊँचा होता है
और देखने में सुंदर होता है,
उस पर लगे नारियल को अपने
पेड़ के सुंदरता पर गर्व था,
सबसे ऊँचाई पर बैठने का
भी उसे बहुत घमंड था,
घमंडी नारियल नदी के पत्थर को
तुच्छ कह अपमान करता था।
शिल्पकार पत्थर लेकर बैठ गया,
उसे तराशने को प्रहार करने लगा,
नारियल को अधिक आनंद आया,
पत्थर से कहा तेरा क्या जीवन है।
पहले नदी में इधर उधर टकराया,
बाहर मनुष्य के पैरों से रौंदा गया,
शिल्पी तुझे चोट पर चोट मार रहा,
तू अपमान की जिन्दगी जी रहा।
नारियल इसी तरह रोज़
पत्थर को अपमानित करता,
शिल्पी पत्थर से शालिग्राम बनाये,
पूजा आरती के बाद उनकी स्थापना
मंदिर में की, पूजा में नारियल
शालिग्राम के चरणों में चढ़ाया।
पत्थर ने तब नारियल से कहा,
कष्ट सह मुझे जो जीवन मिला,
उसे प्रभू प्रतिमा का मान मिला,
तुझे मेरे चरणों में स्थान मिला।
मैं आज तराशने पर ईश्वर
के समतुल्य माना गया,
जो सदैव अपने कर्म करते हैं,
वे आदर के पात्र बनते हैं,
जो अहंकार लिए घूमते हैं,
वो नीचे आ गिरते हैं,
ईश्वर के लिए समर्पण का
महत्व हैं घमंड का नहीं।
पूरी बात नारियल ने सिर
झुकाकर स्वीकार की,
शायद इसे ही कहते हैं,
“घमंडी का सिर नीचा”,
इस से हमें यही शिक्षा मिलती है
कि हम घमंड करके स्वयं अपनी
छवि का अपमान करते हैं।
जो सफलता मिलने पर
भी घमंड नहीं करते हैं,
वास्तव में अपने जीवन में
वही सफल होते हैं।
घमंडी व्यक्ति उपर उठकर
एक दिन नीचे गिरता है,
और उस वक्त जो उसका
अपमान होता है,
उससे बड़ा श्राप उसके
लिए कुछ नहीं होता।
घमंड ऐसा भाव हैं जिसमें
मनुष्य कब फँस जाता है,
उसे इसका भान तक नहीं होता,
इसलिए अपना अवलोकन
स्वयं करना चाहिये,
अपनी करनी व बातों का
निष्पक्ष न्याय करना चाहिये।
हम खुद को दोषी पाते हैं तो
गलती को स्वीकार करें,
समय रहते उस गलती के
लिए क्षमा मांग लें,
घमंडी का नीचा हुआ सिर
फिर से इज़्ज़त पाएगा,
आदित्य उसका सिर फिर से
ऊँचा हो सम्मान पाएगा।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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